- अरूण पुरी
मई के अंत में इंग्लैंड के लिए भारतीय क्रिकेट जत्थे का ऐलान हुआ तो उस वक्त कोई खास उम्मीद नहीं थी. उसी महीने की शुरुआत में दिग्गज क्रिकेटर विराट कोहली और रोहित शर्मा ने पांच दिन के अंतराल में अपने-अपने संन्यास का ऐलान कर दिया था.
चयनकर्ताओं को लगा कि यह प्रयोग करने का अच्छा मौका है. नई टीम नवोदित कप्तान शुभमन गिल की अगुआई में अनपरखे खिलाड़ियों की नए रंग-रूप वाली टीम होगी. लंबी कद-काठी और पक्के इरादों के शुभमन पहले ही आक्रामक स्ट्रोकप्ले के प्रतीक बन चुके थे.
अब 25 साल की उम्र में बतौर कप्तान एक प्रतिष्ठित विदेशी शृंखला में उनकी परीक्षा हो रही थी. यकीनन यह उनके और उनकी अगुआई में नई पीढ़ी के एकादश दोनों के लिए अग्निपरीक्षा ही थी. उनके साथ बल्लेबाजी क्रम में के.एल. राहुल में स्टाइल, सहजता और गजब का धीरज, युवा यशस्वी जायसवाल बाएं हाथ के शानदार प्रदर्शन की मिसाल, और उप-कप्तान ऋषभ पंत तूफानी तेवर के रहे हैं.
लेकिन सबको अपनी काबिलियत दिखानी थी, न कि सिर्फ धूम-धड़ाका और शोशेबाजी करनी थी. गेंदबाजी में भारत के पास विश्वस्तरीय जसप्रीत बुमरा थे लेकिन वे चोटिल होते रहते थे. इससे मोहम्मद सिराज, आकाशदीप और प्रसिद्ध कृष्ण के रूप में दूसरी रक्षा पंक्ति ही बची थी. इसलिए शृंखला शुरू हुई तो किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि भारतीय क्रिकेट ऐतिहासिक मोड़ की ओर बढ़ रहा है.
भारत की तरह इंग्लैंड की टीम भी यूं कहें कि 'निर्माणाधीन’ थी. उसमें जो रूट इकलौते वरिष्ठ खिलाड़ी थे, जो इस शृंखला में टेस्ट इतिहास में दूसरे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बन गए. बेहद प्रतिभाशाली बेन स्टोक्स की अगुआई में यह जिंदादिल नए खिलाड़ियों की टीम थी, जो 'बैजबॉल’ की आक्रामकता पर फली-फूली थी, जो टेस्ट क्रिकेट में टी20-शैली की रणनीति के लिए शानदार नाम है.
लेकिन आखिर में जो हुआ, दोनों टीमों के नए खून की यह जंग बॉलीवुड की बोली में कहें तो भरपूर पैसा वसूल साबित हुई. उसमें दिल टूटने और आंसू छलकने के नजारे थे, ढेर सारा उतार-चढ़ाव और रोमांच था, राहत के क्षण थे और बेसुध खुशी के दृश्य थे. बल्ले से शानदार और ठोस इरादे की पारियां निकल रही थीं, तो गेंद का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था.
यह टेस्ट क्रिकेट के बेहद दिलचस्प और रोमांचक विज्ञापन जैसा था, जो टी-20 क्रिकेट के दौर में हम देखते हैं. पांच टेस्ट मैचों में 7,000 से ज्यादा रन बने, जो इतिहास में दूसरा सबसे बड़ा स्कोर है. भारत ने कुल 3,807 रन बनाए, जो पांच मैचों की शृंखला में किसी भी टीम के बनाए सर्वाधिक रन का रिकॉर्ड है. तीन भारतीय बल्लेबाजों—गिल, राहुल और रवींद्र जडेजा—ने 500 रन का आंकड़ा पार किया, जो भारत-इंग्लैंड टेस्ट मैचों में पहली बार हुआ. कुल 19 शतक लगे, जो किसी भी भारत-इंग्लैंड शृंखला में सबसे ज्यादा हैं. फिर यह देखिए कि भारत ने 12 और इंग्लैंड ने सिर्फ 7 शतक बनाए.
रनों का यह पहाड़ इसलिए खड़ा हुआ क्योंकि घरेलू टीम ने बिना घास वाली बेजान-सी पिच तैयार की थी. अमूमन गेंद में कोई जादुई घुमाव नहीं दिखा, जबकि इंग्लैंड में क्रिकेट की यह खासियत रही है. फिर भी भारतीय तेज गेंदबाजों ने इंग्लिश गेंदबाजों के मुकाबले गेंदों में कहीं ज्यादा जान डाल दी. शेरदिल सिराज ने अविश्वसनीय 185.3 ओवर फेंके, जिसमें निप, स्विंग, कट के साथ मानो कुछ अनदेखे लेजर गाइडेंस सिस्टम जैसा पुट डाला, जिससे स्टंप उखड़ गए.
सिराज की झोली में 23 विकेट गिरे. ओवल में तो उन्होंने दिल की धड़कन बढ़ा देने वाला शानदार करिश्मा दिखाया. वहां कृष्ण ने भी अपने हिस्से के विकेट लिए. आकाश दीप के 10 विकेटों ने भारत को एजबैस्टन में अपनी पहली जीत दिलाने में मदद की. जडेजा और वाशिंगटन सुंदर दोनों ही असलियत में बैटिंग ऑलराउंडर हैं और नाजुक मौकों पर शतक भी लगाए, लेकिन उनकी सधी और संयमित फिरकी गेंदों ने अतिरिक्त मारक क्षमता जोड़ दी.
इस तरह साथ मिलकर इस गेंदबाजी जत्थे ने लगातार अच्छा प्रदर्शन करने वाले उस्ताद बुमरा की कमी नहीं खलने दी और अंतिम मैच में वे मैदान में नहीं उतर सके तो उनकी गैर-मौजूदगी के बोझ से टीम को मुक्त किया.
दोनों टीमों में नए खिलाड़ियों की संख्या सामान्य से ज्यादा थी, जो एक मायने में नौसिखुआ प्रशिक्षु की तरह थे, इसलिए कभी-कभी उच्चतम स्तर का प्रदर्शन नहीं हो पाया. लेकिन प्रतिस्पर्धा इतनी तगड़ी थी, और जोश इतना लबालब था कि यह बेहद रोमांचक टेस्ट क्रिकेट बन गया.
हालांकि शृंखला 2-2 की बराबरी पर छूटी लेकिन दिल की धड़कन बढ़ा देने वाला रोमांच उस सुखद अंत की ओर इस तरह पहुंचा कि ऐसा लगा जैसे भारत ने जीत हासिल कर ली हो. यही वजह है कि पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने ओवल में खेले गए अंतिम मैच में भारत की छह रन की जीत को ''भारतीय क्रिकेट इतिहास की सबसे बड़ी जीत’’ कहा.
सबसे आगे तो गिल खुद रहे. 754 रनों का उनका सर्वकालिक रिकॉर्ड ऐसा शिखर बन गया, जो खिलाड़ियों के लिए चुनौती बना रहेगा. यह उनके धैर्य के अब तक न देखे गए भंडार की भी मिसाल था और मौके के लिहाज से रन गढ़ने का उनका तरीका भी था. वे न केवल बल्लेबाज के नाते, बल्कि बतौर कप्तान भी सोच रहे थे, ये दोनों क्षमताएं उनमें पुरानी शराब की तरह घुली हुई थीं.
उनके साथ पूरी टीम थी जो अब स्टारबर्स्ट की तरह दिखाई देती है. हर नए मामले में इन खिलाड़ियों में क्रिकेट का हुनर पर्याप्त है, उनमें गहराई है और वे धैर्य की परीक्षा दे चुके हैं. भारत की अगली पीढ़ी दबाव और अपेक्षाओं से बेसअर है और चुनौती के लिए तैयार है. बल्लेबाजी में गहराई है और तेज गेंदबाजों की भरमार है. साथ ही, कभी हार न मानने वाला जज्बा, खेल कौशल और अपनी जगह पर डटे रहने की क्षमता भी है.
इस हफ्ते की आवरण कथा में इस शृंखला पर बारीक नजर रख रहे इंडिया टुडे टीवी के कंसल्टिंग एडिटर स्पोर्ट्स निखिल नाज़ ने इस ऐतिहासिक मौके को दर्ज किया है, जब इंग्लैंड में बादलों से ढके आसमान के नीचे ठोस इरादे और जज्बे ने हमारे लड़कों को गबरू जवान बना दिया.