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ट्रेड वॉर के जमाने में सोने की चमक बरकरार; क्यों कीमत घटने के कोई आसार नहीं?

वैश्विक उथल-पुथल के कारण सोने की कीमत पहली बार 1 लाख रुपए के पार चली गई. इससे निवेशकों के चेहरे तो खिल गए हैं लेकिन आभूषण कारोबारियों को बिक्री में गिरावट देखनी पड़ सकती है

सोने के आभूषण (सांकेतिक तस्वीर)
सोने के आभूषण (सांकेतिक तस्वीर)
अपडेटेड 28 मई , 2025

सदियों से भारत में सोना अपनी चमक बिखेरता रहा है, लेकिन इक्कीसवीं सदी में इसने उम्मीदों का नया इंद्रधनुष रचा है. साल 2000 में 4,400 रुपए प्रति 10 ग्राम से शुरू हुआ इसका सफर एक दशक में पांच गुना बढ़कर 20,728 रुपए पहुंचा और फिर 2020 में यह छलांग भरते हुए 50,151 रु. तक आया.

पिछले साल यह 78,245 के ऊंचे स्तर पर रहा. भौगोलिक-आर्थिक अनिश्चितताओं के बवंडर ने इस सुरक्षित निवेश के माध्यम को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया. अप्रैल 2025 में सोने की कीमत झूमते हुए पहली बार 1 लाख रुपए प्रति 10 ग्राम का स्तर पार कर गई. बाद में थोड़ी गिरावट जरूर दिखी पर सोने की चमक घटने के कोई आसार नहीं दिखते.

ट्रेड वार के वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए सोने ने एक मुद्रा के तौर पर अपना मनोवैज्ञानिक रुतबा फिर हासिल कर लिया है. इसके दाम में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी की वजह डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ सूनामी ही थी. इसमें भी अमेरिकी राष्ट्रपति की फेडरल रिजर्व के गवर्नर जेरोम पावेल के बारे में टिप्पणी.

17 अप्रैल को ट्रंप ने कहा कि पावेल की बर्खास्तगी की 'जल्द जरूरत है', उन्होंने फेड से ब्याज दरों में कटौती का आग्रह किया. इसका असर यह हुआ कि 22 अप्रैल को मुंबई सर्राफा बाजार में 24 कैरेट सोने का भाव बढ़कर 1,01,350 रुपए प्रति 10 ग्राम पर जा पहुंचा. यह एक दशक में लगभग पांच गुना उछाल है: 2015 में 24,740 रुपए. फिर वित्त वर्ष 2022 में 48,500 रुपए.

सोने की चिड़िया

सोने में इस तेजी का भारतीय परिवारों के लिए बहुत महत्व है. उनके पास अपनी संपदा का 40 प्रतिशत से अधिक सोना है जबकि शेयरों में यह हिस्सा महज 5-6 प्रतिशत है. चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा स्वर्ण उपभोक्ता देश है, जिसकी सालाना मांग 700 से 800 टन के बीच है. इसमें से लगभग 66 प्रतिशत आभूषणों में जाता है जबकि शेष का उपयोग बिस्कुटों और गिन्नियों में किया जाता है. 

अगस्त 2024 में पीडब्ल्यूसी इंडिया की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारतीय परिवारों के पास कुल मिलाकर करीब 25,000 टन सोना है जिसकी कीमत लगभग 126 लाख करोड़ रुपए है (अप्रैल 2025 में यह 211 लाख करोड़ रुपए या 25 खरब डॉलर पहुंच गया जो कि भारत की जीडीपी का आधा है).

मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि देश भर के मंदिरों की तिजोरियों में लगभग 5,000 टन 'अक्रिय' सोना जमा है. भारत में एक फलता-फूलता गोल्ड लोन बाजार भी है, जिसका संगठित क्षेत्र 7 लाख करोड़ रुपए का होने का अनुमान है, यह वह रकम है जो सोना गिरवी रख कर ली जाती है. 

गहनों की चमक

भारत की सोने की ज्यादातर मांग आयात के जरिए पूरी होती है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में सोने का आयात 30 प्रतिशत बढ़कर 45.54 अरब डॉलर (3.9 लाख करोड़ रुपए) हो गया जो पिछले साल के 35 अरब डॉलर (करीब 3 लाख करोड़ रुपए) से ज्यादा है. वित्तीय सेवा फर्म मोतीलाल ओसवाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुल 6.4 लाख करोड़ रुपए के बाजार में संगठित आभूषण खुदरा क्षेत्र का हिस्सा 36-38 प्रतिशत है.

क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार, सोने की बढ़ती कीमतों के कारण वित्त वर्ष 26 में आभूषणों के संगठित खुदरा विक्रेताओं की बिक्री की मात्रा 9-11 प्रतिशत तक घट सकती है. लेकिन ऊंची कीमतों और प्राप्तियों के कारण राजस्व में 13-15 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है.

टाइटन, जोयालुकास, कल्याण और रिलायंस ज्वेल्स जैसे आभूषण खुदरा विक्रेता अपना दायरा बढ़ा रहे हैं. आदित्य बिरला समूह भी पिछले साल अपने नए ब्रांड इंद्रिय के साथ बाजार में आया है. कीमतों में उछाल का इन कंपनियों पर दोतरफा असर पडऩे की संभावना है.

पहला, परिचालन मार्जिन में गिरावट का रुझान टूटने की संभावना है और यह वित्त वर्ष 26 में बढ़कर 7.8-8 प्रतिशत हो सकता है. दूसरा, उनके पास जमा सोने की ऊंची लागत के कारण ऋण स्तर बढ़ सकता है. क्रिसिल रेटिंग्स के एसोसिएट डायरेक्टर गौरव अरोड़ा कहते हैं, ''बढ़ते कर्ज के बाद भी सोने के गहनों के खुदरा विक्रेताओं का पूंजी ढांचा सहज बना रहेगा.''

इस बीच, सोने के निवेशकों को मुश्किल फैसले का सामना करना पड़ रहा है कि वे इन परिसंपत्तियों को महंगाई से बचाव के रूप में बनाए रखें या तेजी की गंगा में हाथ धोते हुए बेच दें. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के हमले से शुरू हुए भू-राजनैतिक टकराव और अक्तूबर 2023 में गजा में इज्राएल के सैन्य हमले से सोने के दाम चढ़े. और फिर ट्रंप ने 2 अप्रैल को भारत समेत कई देशों पर 'जवाबी शुल्क' लगाने की घोषणा कर यह अनिश्चितता और बढ़ा दी.

सलाहकार फर्म बीएन वैद्य ऐंड एसोसिएट्स के भार्गव वैद्य कहते हैं, ''वैश्विक स्थिरता में गड़बड़ी सोने की कीमतों पर असर डालती है क्योंकि यह एकमात्र ऐसी सुरक्षित कमोडिटी है जिस पर लोग मुश्किल के समय भरोसा करते हैं.'' इसे मुद्रा अवमूल्यन और महंगाई से सबसे बढ़िया बचाव माना जाता है. सोने में निवेश गोल्ड ईटीएफ (एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड), गोल्ड म्युचुअल फंड, फिनटेक प्लेटफॉर्मों के जरिए डिजिटल गोल्ड, गोल्ड सेविंग स्कीम या सॉवरिन गोल्ड बॉन्ड के रूप में भी होता है.

वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की फरवरी की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में सोने की निवेश मांग 2024 में 239 टन थी जो 2013 के बाद सबसे ज्यादा है. यह वर्ष 2023 के 185 टन से 29 प्रतिशत का इजाफा है. जुलाई 2024 में आयात शुल्क में—15 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत तक—कटौती ने भी इस उछाल में योगदान दिया.

आगे क्या?

क्या कीमतों की नई ऊंचाइयां तलाशना अव्यावहारिक होगा? यह प्रश्न हरेक के दिमाग में आया जब 22 अप्रैल के शीर्ष स्तर के बाद ट्रंप के चीन (और पावेल) पर नरम रुख को देखते हुए कीमतें गिरीं. 30 अप्रैल को सोना मुंबई में 97,030 रु. पर ट्रेड कर रहा था. वैद्य को लगता है कि ग्लोबल रुझानों से सोना फिर 1 लाख रुपए के स्तर पर होगा. पहलगाम जैसी घटनाएं सोने को चढ़ाती और रुपए को गिराती हैं. लिहाजा सोने पर भारत का भरोसा बना रहेगा.

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