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भारत में कैसे शुरू हुआ खानपान को राजनीति में घसीटने का चलन?

देश की लगभग आधी जनसंख्या मांसाहारी होने के बावजूद धर्म के तथाकथित पहरुए मांसाहार के खिलाफ नए मोर्चे खोल रहे हैं

फोटो इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास
अपडेटेड 26 मई , 2025

कोलकाता में कॉलेज स्ट्रीट की चहलपहल-भरी गलियों के भीतर मांस की एक मामूली-सी दुकान है, जिसे लोग सौ साल से भी ज्यादा पुरानी बताते हैं. इसके भीतर बंगाल की प्रिय और प्रचंड देवी मां काली की मूर्ति विराजमान है. रोज सुबह फूल, धूपबत्ती और मंत्रोच्चार के साथ उनकी पूजा की जाती है.

फिर दिन भर वे उस कारोबार की देखरेख करती हैं जिसमें ताजा मटन और बोटियों की खुदरा बिक्री की जाती है. 'कसाई काली' का यह रूप बाहरी लोगों को अप्रिय और कटु लग सकता है, लेकिन बंगालियों के लिए यह आस्था और सहअस्तित्व की सहज अभिव्यक्ति है.

दुकान से अब स्थायी तौर पर जुड़े बंटू सिंह कहते हैं, ''लोग हमारी संस्कृति को नहीं समझते. जब हमारी दुकान के वीडियो ऑनलाइन पोस्ट किए गए तो कइयों ने पूछा, 'मीट की दुकान में मूर्ति कैसे हो सकती है?' उन्हें समझाना मुश्किल है.''

लेकिन जिस बात को बंगाल यानी लंबे समय से मछली, मांस और देवी-देवताओं का जश्न मनाती आ रही नदी सभ्यता के भीतर समझाने की जरूरत नहीं है, उस पर बाहर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं. नई दिल्ली के बंगाली-बहुल इलाके चितरंजन पार्क (सीआर पार्क) में हाल की एक घटना ने संस्कृति, खानपान और आस्था को लेकर तीखी बहस छेड़ दी.

तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो डाला, जिसमें कुछ भगवाधारी लोग काली मंदिर के पास मछली विक्रेताओं को हड़काते और यह कहते दिखे कि पूजास्थल के नजदीक मछली बेचना 'सनातन धर्म' का अपमान है.

मोइत्रा ने घटना की निंदा की और उन लोगों को 'भाजपा के गुंडे' करार देते हुए उन पर सांस्कृतिक एकरूपता थोपने का आरोप लगाया जो बंगाल के लोकाचार के लिए अजनबी है. खानपान की आदतों को जिस तरह अब नियंत्रित किया जा रहा है, उस पर तीखा हमला बोलते हुए उन्होंने वीडियो के नीचे लिखा, ''(सीआर पार्क के) 60 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ.'' 

सत्तारूढ़ भाजपा ने अलबत्ता मोइत्रा के आरोपों को खारिज कर दिया. दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने वीडियो को 'फर्जी और तोड़ा-मरोड़ा गया' बताया और मोइत्रा पर वैमनस्य भड़काने की कोशिश करने का आरोप लगाया. उन्होंने वीडियो की 'सत्यता' का पता लगाने के लिए पुलिस जांच की भी मांग की.

सीआर पार्क के बंगाली बाशिंदे हालांकि स्वीकार करते हैं कि ऐसे टकराव अब यदा-कदा नहीं रह गए हैं और असामाजिक तत्व नवरात्र के दौरान मांस और मछली खाने के खिलाफ चेतावनियां तक जारी करते हैं. गौरतलब है कि वीडियो में दिखाया गया मछली बाजार सीआर पार्क के मार्केट न. 1 के तहत आता है, और उसके नजदीक यह मंदिर इसी बाजार के दुकानदारों ने बनवाया था, जिनमें कई मछली विक्रेता भी थे.

खानपान बना जंग का मैदान

यह कोई अलग-थलग घटना नहीं बल्कि तमाम राज्यों में कहीं ज्यादा बड़े रुझान का हिस्सा है, जहां खानपान की आदतों और खासकर मांस और मछली से जुड़ी आदतों को पहचान की राजनीति के दायरे में घसीट लिया गया है. खास तौर पर देश के उत्तर में तथाकथित ऊंची जातियों के बड़े हिस्से मांसाहार को पारंपरिक रूप से नीची नजर से देखते हैं और इसे 'अशुद्ध' मानते हैं.

इन सबके बावजूद भारत काफी हद तक मांसाहारी देश है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) 2019-21 के मुताबिक 15-49 वर्ष आयु वर्ग के 83.4 फीसद पुरुष और 70.6 फीसद महिलाएं मांसाहारी हैं. दरअसल, 'शुद्ध शाकाहारी' क्रमश: 16.6 फीसद और 29.4 फीसद ही हैं.

इन विभाजनों की जड़ें जातिगत रूढ़ियों पर आधारित मतभेदों में हैं और आज इसमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ कई बार दबे-छिपे, और कई बार खुले तौर पर, राजनैतिक संदेश भी शामिल हैं. कभी विभिन्न लोगों, संस्कृतियों और विचारों को साथ लेकर चलने वाला और विश्वबंधुत्व का प्रतिमान माना जाने वाला मुंबई इस बदलाव का प्रमुख उदाहरण है, जहां शहर के कुछ हिस्सों में अगर आप मांसाहारी हैं तो आपको रहने के लिए जगह देने से इनकार किया जा सकता है.

गगनचुंबी इमारतों और जमीन-जायदाद की बढ़ती कीमतों के बीच, यह मुंबई का संभ्रांतीकरण ही है कि चारदीवारी के भीतर शाकाहारियों और जैनियों के सुरक्षित समुदायों की संख्या बढ़ रही है. मटन-मछली पसंद करने वाले महाराष्ट्रियन को हाशिए पर धकेला जा रहा है.

मछुआरों के संगठन अखिल महाराष्ट्र मच्छीमार कृति समिति के देवेंद्र टंडेल का कहना है कि सबसे ज्यादा खामियाजा मुंबई के मूल बाशिंदे कोली (मछुआरा) समुदाय को भुगतना पड़ रहा है. वे बताते हैं कि 'शाकाहारी टावर' के बाशिंदों को नजदीक के मछली बाजार हटाने की मांग करते देखना असामान्य बात नहीं है. टंडेल कहते हैं, ''धार्मिक प्रथाएं निजी मामला हैं...लोगों के संवैधानिक अधिकारों पर इसका असर नहीं पड़ना चाहिए.'' पाले के दूसरी तरफ शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) के नेता और पूर्व सांसद संजय निरुपम सरीखे लोग हैं, जिन्होंने नवरात्र उत्सव के दौरान गैर-शाकाहारी स्ट्रीट फूड की बिक्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. वे कहते हैं, ''संस्कृति थोपने का सवाल ही नहीं उठता... हम केवल नवरात्र के दौरान इसे सड़क के किनारे पकाने और बेचने के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.'' वे सड़क-किनारे खाने-पीने की दुकानों पर प्रतिबंध लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरफ इशारा करते हैं (लेकिन यह प्रतिबंध तो शाकाहारी विक्रेताओं पर भी लागू होता है).

जिसकी लाठी, उसकी भैंस

योगी आदित्यनाथ की हुकूमत वाले उत्तर प्रदेश में मांस अक्सर राजनैतिक, सांस्कृतिक और धार्मिक टकराव का मुद्दा बन जाता है. बीते कुछ सालों में यह राज्य लोगों के बीच मांस-विरोधी और हलाल-विरोधी भावनाओं के उभार का गवाह रहा है. मांस के हलाल-प्रमाणित उत्पादों पर पाबंदी, बूचड़खानों पर कड़ी कार्रवाई, स्कूलों के मिड-डे मील में अंडों को शामिल न करना, और हिंदू त्योहारों के दौरान मांस की बिक्री पर पाबंदी/रोक सरीखे कदमों को अक्सर स्वयंभू सतर्कता जत्थों के जरिए लागू किया जाता है, जिससे सरकार की सत्ता और जनता की पुलिसिया कार्रवाई के बीच की लकीरें धुंधली पड़ जाती हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक मांस व्यापारी कहते हैं, ''इससे भी बदतर बात है पाखंड. इन पाबंदियों की अगुआई करने वाले कई लोग बंद दरवाजों के भीतर गैर-शाकाहारी भोजन का लुत्फ उठाते हैं. बात धर्म या शुद्धता की नहीं, नियंत्रण और फूट डालने की है.''

इस सिलसिले की शुरुआत 2017 में हुई. सत्ता संभालने के कुछ ही दिन बाद प्रशासन ने 'अवैध बूचड़खानों' पर चौतरफा कार्रवाई शुरू कर दी. मांस के कारोबार से जुड़े लोगों में व्यापक दहशत फैल गई. कार्रवाई राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के 2015 के एक आदेश को लागू करने की आड़ में की गई, लेकिन यह भाजपा के एक बड़े चुनावी वादे को पूरा करना भी था. नवंबर 2023 में उत्तर प्रदेश खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन ने अधिसूचना जारी करके हलाल-प्रमाणित खाद्य उत्पादों के निर्माण, बिक्री और वितरण पर रोक लगा दी, केवल निर्यात के मकसद से बने उत्पादों को छोड़ दिया गया. इससे राज्य नीति का दोहरा चरित्र भी सामने आता है: 2024 में भारत ने 13 लाख टन भैंस के मांस का निर्यात किया, जिसमें 60 फीसद से ज्यादा हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की थी.

इस बीच राज्य ने हलाल पाबंदी को यह कहकर सही ठहराया कि यह 'जनस्वास्थ्य' की रक्षा और एकसमान मानकों को लागू करने के लिए किया गया. उसने दावा किया कि कुछ संगठन हलाल प्रमाणपत्र का इस्तेमाल गैरवाजिब कारोबारी फायदा हासिल करने के लिए कर रहे थे. यही नहीं, भाजपा की युवा शाखा के एक सदस्य की शिकायत पर हलाल काउंसिल ऑफ इंडिया (मुंबई) सहित मुस्लिम संस्थाओं के खिलाफ मामला भी दर्ज कर लिया गया और उन पर धार्मिक भावनाओं का फायदा उठाने का आरोप लगाया गया.

प्रतीकवाद नीतियों पर हावी रहा. राज्य 2023 से शाकाहार के हिमायती साधु टी.एल. वासवानी की जयंती के उपलक्ष में 25 नवंबर को 'नो नॉन-वेज डे' मनाता आ रहा है. हिंदुओं के पवित्र श्रावण माह में कांवड़ यात्रा के दौरान तीर्थयात्रा के मार्गों पर 'खुले में मांस की बिक्री और खरीद' पर प्रतिबंध है. पिछले साल एक नए आदेश ने तनाव की एक और परत जोड़ दी—यात्रा के मार्ग पर पड़ने वाले कारोबारों और खाने-पीने की दुकानों से मालिक का नाम प्रदर्शित करने को कहा गया, जिसका आलोचकों ने मुस्लिम प्रतिष्ठानों को अलग-थलग करने की कोशिश कहकर मजाक उड़ाया.

औपचारिक नीतिगत कार्रवाइयों के अलावा उत्तर प्रदेश बारंबार स्वयंभू सतर्कता जत्थों के न्याय की घटनाओं का भी गवाह रहा. यह शैक्षिक क्षेत्रों में भी दिखाई देता है. लखनऊ के बाबा भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) ने चौतरफा सांस्कृतिक दबावों के साथ सांस्थानिक मेल का संकेत देते हुए 2016 में मेस में गैर-शाकाहारी खाने की चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया, बावजूद इसके कि छात्र इस 'दलित-विरोधी कदम' का विरोध कर रहे थे. पिछले साल अमरोहा के एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल ने लंचबॉक्स में गैर-शाकाहारी खाना लाने के लिए नर्सरी के एक छात्र को निलंबित कर दिया. बच्चे की मां की तरफ से पोस्ट किया गया वीडियो वायरल होने के बाद इस मामले ने चौतरफा ध्यान खींचा. 2019 में उर्स के दौरान 'पूर्व सम्मति' लिए बिना गैर-शाकाहारी बिरयानी परोसने के लिए महोबा जिले के 43 लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई.

स्वयंभू गौरक्षकों के हाथों संचालित गौरक्षक दस्ते राज्य में मांस-विरोधी भावनाओं की सबसे हिंसक अभिव्यक्ति बने हुए हैं. वे अक्सर बिना किसी भय या कार्रवाई के काम करते हैं और गौहत्या या गोमांस खाने के संदिग्ध मुसलमानों और दलितों को निशाना बनाते हैं. बीते दशक में उत्तर प्रदेश ऐसी कई घटनाएं देख चुका है. उनमें सबसे कुख्यात 2015 में गोमांस रखने की अफवाह के चलते दादरी में मोहम्मद अखलाक को पीट-पीटकर मार डालने की घटना थी.

पड़ोसी मध्य प्रदेश भी हाल के वक्त में इस मोर्चे पर उत्तर प्रदेश के साथ कदमताल करने की कोशिश करता रहा है. दिसंबर 2023 में पद संभालने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव का पहला आदेश खुले में मांस और मछली की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का था. नवनियुक्त मुख्यमंत्री के आदेश पर तमाम जिलों के प्रशासन ने बहुत तत्परता से काम किया.

फुटपाथों पर खोमचे लगाने वाले छोटे मछली विक्रेताओं को खदेड़कर भगा दिया गया और मांस की दुकानों के प्रवेशद्वारों पर परदे नजर आने लगे. नगर निकायों ने कुछ महीनों में इस मुहिम को धीमा कर दिया, लेकिन मांस की दुकानें सरकार के निशाने पर बनी हुई हैं. मध्य प्रदेश में 'हिंदू महत्व' के 19 शहरों में शराब की दुकानें 1 अप्रैल, 2025 से बंद कर दी गई हैं. कुछ दक्षिणपंथी धड़े इन शहरों में अब मांस की बिक्री पर भी प्रतिबंध चाहते हैं. 

इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य की आंगनवाड़ियों में बच्चों के आहार में अंडे शामिल करने का कड़ा विरोध किया था, बावजूद इसके कि कुपोषण के कुछ सबसे बदतरीन संकेतक मध्य प्रदेश में हैं. राज्य की 21 फीसद आबादी आदिवासी है, जो ज्यादातर मांसाहारी है. फिर भी आदिवासी इलाकों में आंगनवाड़ियां अंडे नहीं परोसतीं, जिन्हें पोषण विशेषज्ञों ने बच्चों के लिए प्रोटीन का सबसे अच्छा और सबसे सस्ता स्रोत बताया है. राज्य में दूसरे समूहों के मुकाबले आदिवासी समुदायों में कुपोषण सबसे ज्यादा है. 

अशुद्ध तर्क

अर्थशास्त्री और प्रोफेसर डॉ. नीरज हटेकर कहते हैं, ''शुद्धता और अशुद्धता के विचार जाति व्यवस्था से जुड़े हुए हैं और इसमें 'अशुद्ध' कार्यों में लगे लोगों को सामाजिक क्रम में निचले पायदान पर रखा जाता है.'' अनुभव और प्रयोगों पर आधारित डेटा से पता चलता है कि भारत प्रमुख रूप से अब एक मांसाहारी देश बन चुका है (देखें बॉक्स). दलित किचन ऑफ मराठवाड़ा के लेखक शाहू पटोले कहते हैं कि दलित समुदाय परंपरागत रूप से अपने खान-पान की वजह से शर्म और हीनता के भाव से ग्रसित था. उन्हें लगता है, ''अब, व्यापक बहुजन समुदाय ने मांसाहारी भोजन खाने के मामले में उसी तरह सोचना शुरू कर दिया है.''

दरअसल, बहुजन समाज के लिए अपने मामले को उठाना अब भी मुश्किल काम है. मिसाल के तौर पर एक ओर जहां दिल्ली के संभ्रांत चितरंजन पार्क इलाके का मामला सुर्खियों में छा गया लेकिन उसके पास गोविंदपुरी के इंदिरा फिश मार्केट इतना भाग्यशाली नहीं रहा, जहां से निम्न मध्य वर्ग के लोग मछली खरीदते थे. मछली के स्टॉलों को नवरात्रि के दौरान बंद रखने को कहा गया; 10 दिन बाद उन्हें ढहा दिया गया. दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) का कहना है कि यह मार्केट ''अवैध'' था लेकिन विक्रेताओं का कहना है कि उनके पास फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) का लाइसेंस है. जो भी हो, अब यह बाजार नहीं है.

गीता प्रेस ऐंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया के लेखक अक्षय मुकुल बताते हैं कि हिंदुत्व दक्षिणपंथियों का मांस के खिलाफ अभियान 20वीं सदी के पहले पच्चीस वर्षों के दौरान हिंदुओं और मुसलमानों के बीच वर्चस्व की सियासत के उदय के साथ शुरू हुआ. वे कहते हैं, ''इस अवधि के दौरान, उत्तर भारत में दंगे हुए थे और हिंदू एकजुट हो रहे थे. मांसाहारियों और सात्विक भोजन करने वालों के बीच की भिन्नता को खुद को एक-दूसरे से अलग करने और श्रेष्ठ जताने के लिए इस्तेमाल किया गया.'' उनके मुताबिक, गीता प्रेस ने गोमांस खाने वालों के प्रति विरोध व्यक्त किया और इसको लेकर हिंदू विद्वानों के लेखन को नजरअंदाज किया. वे बताते हैं, ''गाय से आगे बढ़ते हुए यह शाकाहार की ओर बढ़ गया. हालांकि, बी.एस. मुंजे सरीखे दक्षिणपंथी हिंदू नेता मांसाहारी भोजन करते थे और इसके सेवन को प्रोत्साहित करते थे.'' हलाल मांस के खिलाफ दक्षिणपंथी अभियान के बारे में मुकुल कहते हैं, ''वे मुसलमानों को उनकी जगह दिखाने की कला में माहिर होते जा रहे हैं.'' खानपान इतिहासकार चिन्मय दामले इस तर्क को एक अलग नजरिए से देखते हैं. वे कहते हैं, ''भारत में शाकाहार को शुद्धता से जोड़ा जाता है. ब्राह्मण और जैन सरीखे समूह आबादी का बहुत छोटा सा हिस्सा भर हैं, मगर अपने खानपान की पसंद और जाति के अधार पर वे खुद को श्रेष्ठ बताने की कोशिश करते हैं.''

हलाल बनाम झटका

मांस को लेकर जंग में एक नया मोर्चा खुल गया है और इसमें पशुओं या मुर्गों को मारने के लिए हलाल के बजाए झटका विधि के इस्तेमाल पर जोर दिया जा रहा है. यहां तक कि महाराष्ट्र ने झटका मांस की आपूर्ति करने वाले हिंदू कसाइयों के लिए 'मल्हार प्रमाणन' भी लॉन्च किया है. झटका में, गर्दन पर एक तेज झटका देकर यानी वार करके पशु को काट दिया जाता है, जबकि हलाल में पशु का खून बहाने के लिए नली और धमनियों को काटा जाता है. मल्हार प्रमाणन प्लेटफॉर्म का उद्घाटन करने वाले भाजपा नेता और मंत्री नितेश राणे का कहना है कि इसका मकसद एक विकल्प तैयार करना था. उन्होंने आरोप लगाया, ''लोगों पर हलाल मांस थोपे जाने की शिकायतें आ रही थीं.''

मल्हार प्रमाणन लॉन्च करने वाले हिंदू दलित खटीक महासंघ के प्रवक्ता आकाश पलांगे कहते हैं, ''झटका हिंदू संस्कृति का हिस्सा है, जबकि हलाल इस्लाम में आता है और उसे हम पर थोप दिया गया था.'' वे आरोप लगाते हैं कि लगभग 90 फीसद हिंदू खटीक, जो दलित हैं, उन्हें हलाल मांस के थोपे जाने की वजह से अपने पारंपरिक मांस कारोबार को छोड़ना पड़ा. ''हम हलाल का विरोध नहीं कर रहे हैं...हम बस हिंदुओं से अपील कर रहे हैं कि वे हिंदू खटीकों के आर्थिक सहयोग के तौर पर झटका मांस का सेवन करें.'' अब तक महाराष्ट्र में लगभग 150 मांस विक्रेताओं ने प्रमाणन के लिए पंजीकरण कराया है और पलांगे का दावा है कि ये संख्या बढ़ेगी. वे सरकार से अपने लिए शहर की वधशालाओं में जगह आवंटित किए जाने की मांग कर रहे हैं. 

हलाल बनाम झटका की बहस को बंगाल में भी हवा दी जा रही है, मगर अलग तरीके से. भाजपा बार-बार गोपाल पंथा के नाम से मशहूर गोपाल चंद्र मुखोपाध्याय की याद दिलाती है जो एक कसाई था और 1946 में 'डायरेक्ट ऐक्शन डे' के दौरान अपनी भूमिका के लिए याद किया जाता है. भाजपा उसे मुस्लिम आक्रामकता का सामना करने वाले नायक के तौर पर पेश करती है, जबकि अन्य उसे एक बदमाश मानते हैं जिसकी विरासत खून-खराबे में डूबी हुई है. दक्षिणपंथी तंत्र गोमांस के सेवन को सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस की ओर से मुस्लिम तुष्टिकरण से जोड़ता रहा है, मगर 'गोमांस प्रतिबंध' को बंगाल में समर्थन नहीं मिल रहा है. 

लेकिन इतना सब होने के बावजूद, कोई भी, विशेषकर सरकार में, इस बात की शिकायत नहीं कर रहा है कि कैसे मांस अब अर्थव्यवस्था में भी एक बड़ा योगदानकर्ता बन गया है. 2023-24 में भैंसे का मांस पशु उत्पादों के निर्यात में 82 फीसद हिस्सेदारी के साथ सबसे आगे रहा. वित्तीय वर्ष 2024 में पशु उत्पादों का निर्यात 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर (38,424 करोड़ रुपए) का था और उसमें भैंस का मांस 3.7 अरब डॉलर (31,593 करोड़ रुपए) था, उसके बाद भेड़/बकरे का मांस (7.77 करोड़ डॉलर), अन्य मांस (8 लाख डॉलर) और पोल्ट्री उत्पाद (18.46 करोड़ डॉलर) थे. मांस उत्पादन पिछले साल की तुलना में 4.9 फीसद की वृद्धि के साथ उसी अवधि में 1.03 करोड़ टन हो गया. अंडे का उत्पादन भी 3.2 फीसद बढ़कर 142.8 अरब हो गया है. प्रति व्यक्ति अंडे की खपत भी सालाना 101 से बढ़कर 103 हो गई है.

इतिहास मिटाया नहीं जा सकता

खानपान पर सियासत मांस के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध से काफी विपरीत है. इंडोलॉजिस्ट नृसिंह प्रसाद भादुड़ी बताते हैं कि भारतीय संस्कृति में मांस सेवन की जड़ें गहरी हैं जो वेदों तक जाती हैं. वे कहते हैं, ''ऋग्वेद में घोड़े, बैल और भेड़ की बलि और सेवन का उल्लेख है. किस पशु का कौन-सा हिस्सा कौन खाएगा, यह भी विस्तार से बताया गया है. दूध की ओर मुड़ना पौष्टिक चुनाव था, न कि कोई धार्मिक आदेश.'' ये संदर्भ वाल्मीकि रामायण में भी मौजूद हैं और यहां तक कि कई पुराणों में अंतिम संस्कार की विधियों के दौरान मांस परोसे जाने का जिक्र है. भादुड़ी के मुताबिक, बौद्ध धर्म के आगमन के साथ शाकाहार की जड़ें गहरी होनी शुरू हुईं जिसमें पशुओं की हत्या को सख्ती से प्रतिबंधित किया गया.

बंगाल में मांस-मछली खाने की संस्कृति आध्यात्मिक जीवन के साथ गहराई से जुड़ी हुई है. ऐतिहासिक रूप से देवी काली को 'बलि' देकर पूजा जाता रहा है—अतिवादी मामलों में, यहां तक कि मानव बलि भी दी गई है. 'डकाते काली' परंपरा का जिक्र करते हुए भादुड़ी कहते हैं, ''प्राचीन काल में, डकैत डकैती करने जाने से पहले मानव बलि देते थे.'' उनका मानना है कि धर्म हमेशा क्षेत्रीय रीति-रिवाजों को समायोजित करता है. वे रामायण का उदाहरण देते है: ''जदन्य: पुरुष: राजन, तदन्यस्तस्य देवता (जैसा मानव होता है, वैसे ही देवी-देवता).'' दुर्भाग्य कि ऐसे सिद्धांत आज की सियासत में गुम हो गए हैं और किसी व्यक्ति या समुदाय के खानपान की आदतें तक तिरस्कार की वजह बन रही हैं.

—साथ में अर्कमय दत्ता मजूमदार, अवनीश मिश्र और राहुल नरोन्हा

बखेड़े की जड़ें

दिल्ली
अप्रैल 2025: 'सनातनियों' ने चितरंजन पार्क मार्केट के मछली विक्रेताओं को धमकाया क्योंकि बाजार काली मंदिर से सटा हुआ है. 

पश्चिम बंगाल
मार्च 2025: नादिया जिले के टीएमसी नियंत्रित नबदीप नगरपालिका ने मांस विक्रेताओं से होली के दौरान दुकान बंद रखने का आग्रह किया.

अप्रैल 2025: पुरुलिया नगरपालिका, जिसकी बागडोर टीएमसी के पास है, ने मांस विक्रेताओं से रामनवमी के दौरान दुकान बंद रखने के लिए कहा.

महाराष्ट्र
फरवरी 2025: सरकार ने मिड-डे मील में अंडा देने के लिए धन रोक दिया. आलोचकों ने इसका असर बच्चों के पोषण पर पड़ने का हवाला दिया.

अप्रैल 2025: 'गंदे' मांसाहारी महाराष्ट्रियन और गुजरातियों के बीच मुंबई के घाटकोपर में झड़प हुई.  

मध्य प्रदेश
दिसंबर 2023: सरकार ने राज्य में खुले में मांस/मछली की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया.

सितंबर 2024: नर्मदा नदी के किनारे स्थित सभी धार्मिक नगरों में मांस/शराब की दुकानों को बंद करने का आह्वान.

मार्च 2025: मैहर शहर में नवरात्रि के दौरान मांसाहारी भोजन की बिक्री पर प्रतिबंध.

उत्तर प्रदेश
नवंबर 2023: सरकार ने अध्यादेश जारी कर हलाल प्रमाणित फूड प्रोडक्ट्स को प्रतिबंधित किया (निर्यात वाले उत्पादों पर कोई प्रतिबंध नहीं).

मार्च 2025: अवैध बूचड़खानों पर छापेमारी करके उन्हें बंद कराया गया, चैत्र नवरात्रि त्योहार से पहले हिंदू धार्मिक स्थलों से 500 मीटर के दायरे में मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया.

अप्रैल 2025: रामनवमी के दौरान पशु वध और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया.

इतिहास में झांको तो..

> इंडोलॉजिस्ट एन.पी. भादुड़ी कहते हैं कि वाल्मीकि रामायण, वेद व्यास की महाभारत और पुराणों में मांस खाने का उल्लेख है.

> विद्वान 'तर्कतीर्थ' लक्ष्मणशास्त्री जोशी की हिंदूधर्म समीक्षा में ऐसे उदाहरणों पर प्रकाश डाला गया है, जहां वैदिक देवता बकरियों, घोड़ों और गायों की बलि से प्रसन्न होते थे.

> बंगाल में देवी काली की पूजा ऐतिहासिक रूप से मांस के प्रसाद के साथ की जाती रही है. पुराने दिनों में, डाके डालने जाने से पहले मानव बलि—डाकते काली—देते थे.

> इतिहासकार डी.एन. झा ने मिथ ऑफ द होली काउ में प्राचीन भारत में बलि और आहार में गाय के मांस के होने के प्रमाण प्रस्तुत किए हैं.

> पशु बलि और मांस को भोजन के रूप में खाना पूरे भारत में धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा रहा है, यहां तक कि कामाख्या (असम), कालीघाट (कोलकाता) और तुलजा भवानी (महाराष्ट्र) जैसे प्रसिद्ध मंदिरों में भी.

थाली का सच

> राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2019-21 के अनुसार, 49.3 फीसद पुरुष और 39.3 फीसद महिलाएं हर हफ्ते मछली, चिकन या मांस का सेवन करती हैं.

> जिन लोगों ने कभी मांसाहारी भोजन नहीं खाया, उनकी संख्या क्रमश: सिर्फ 16.6 फीसद और 29.4 फीसद थी.

> डेटा मांसाहारी भोजन की खपत में 'धीरे-धीरे वृद्धि' दिखाता है. एनएफएचएस 2015-16 के डेटा में सिर्फ 43.2 फीसद पुरुषों और 36.6 फीसद महिलाओं को नियमित रूप से मांस खाने वालों के रूप में पहचाना गया था.

> मांस अब अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदानकर्ता है. वित्त वर्ष 2024 में पशु उत्पादों का निर्यात 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर (38,424 करोड़ रुपए) का था, जिसमें भैंस के मांस का योगदान 3.7 अरब डॉलर (31,593 करोड़ रुपए) था.

> भारत सरकार की 2023-24 की रिपोर्ट कहती है कि भारत अब मांस उत्पादन में दुनिया में पांचवें स्थान पर है, जहां सालाना 45 लाख टन मांस का उत्पादन होता है; अंडे के उत्पादन में यह 14,280 करोड़ अंडों के साथ चीन के बाद दुनिया में दूसरे स्थान पर है.

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