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‘बायोबैंक’ क्या है और ये देश के लिए क्यों है जरूरी?

बायोबैंक स्थापित करने के मुश्किल काम को पूरा करने के बाद अब शोधकर्ताओं के सामने भारत के सबसे व्यापक आनुवंशिक अध्ययन से जानकारियां खोद निकालने की जिम्मेदारी है

जटिल बीमारियों को समझने के लिए महत्वपूर्णः इलस्ट्रेशन: नीलांजन दास/एआइ
अपडेटेड 21 मई , 2025

भारत के अब तक के सबसे बड़े जीनोमिक अध्ययन में देश के विशिष्ट आनुवंशिक वैरिएंट यानी प्रकारों की पहचान की गई है और यह वैश्विक जीनोमिक शोध में लंबे वक्त से जारी अंतर को पाटने की दिशा में बेहद अहम कदम है. अध्ययन के प्रारंभिक नतीजे पिछले हफ्ते नेचर जेनेटिक्स में प्रकाशित हुए. इसे जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट ने अंजाम दिया है. यह देश की विशाल जेनेटिक विविधता का पता करने का देशव्यापी प्रयास है.

जनवरी 2020 में शुरू किए गए जीनोमइंडिया ने भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से के बीच जीनोम सीक्वेंसिंग यानी जीनोम अनुक्रमण को पूरा करने के लिए 20 शोध संस्थान और 100 से ज्यादा शोधकर्ताओं को एक साथ जोड़ा. जीनोम सीक्वेंसिंग वह तकनीक है जिसके जरिए डीएनए का निर्माण करने वाले हिस्सों को, जिन्हें न्यूक्लियोटाइड कहते हैं, डीकोड किया जाता है.

आदिवासी और गैर-आदिवासी समेत, देशभर में फैले 83 जनसंख्या समूहों से खून के 20,000 नमूने इकट्ठा किए गए. इनमें से 10,074 लोगों के डीएनए नमूनों का अध्ययन किया गया. देश में 4,600 से ज्यादा अलग-अलग जातीय समुदाय रहते हैं, मगर देश की इस मूलभूत आनुवंशिक विविधता को अब तक दुनिया के जीनोमिक्स अध्ययनों में पूरे विस्तार से दर्ज नहीं किया गया था.

इस प्रोजेक्ट का मकसद इलाके के विशिष्ट स्वास्थ्य और बीमारी पैटर्न की बेहतर समझ के लिए भारतीय आबादी की आनुवंशिक बनावट से जुड़े जरूरी डेटा को हासिल करना है.

एक मानव जीनोम में 3.2 अरब बुनियादी जोड़े या सीक्वेंस यानी अनुक्रम होते हैं, जो चार न्यूक्लियोटाइड एडेनिन (ए), साइटोसिन (सी), गुआनिन (जी) और थायमिन (टी) से मिलकर बने होते हैं. ये बुनियादी जोड़े डीएनए के लंबे अणुओं में संयोजित होते हैं जिन्हें क्रोमोजोम या गुणसूत्र कहा जाता है.

इनके 23 जोड़े होते हैं जिसमें से 22 को ऑटोजोम कहते हैं और 1 जोड़ा सेक्स या लैंगिक गुणसूत्र का होता है जो व्यक्ति के लिंग का निर्धारण करता है. दो व्यक्तियों के जीनोम में आम तौर पर 0.1 से 0.4 फीसद का फर्क होता है. इसका मतलब है कि उनके जीनोम कोड या कूट में कुछ लाख स्थानों का फर्क होगा.

जीनोमइंडिया अध्ययन में 9,772 व्यक्तियों का जीनोम सीक्वेंसिंग करने पर 18 करोड़ आनुवंशिक प्रकार पाए गए. इनमें से लगभग 13 करोड़ वैरिएंट ऑटोजोम या गैर-लैंगिक क्रोमोजोम में थे. इनमें से 65 फीसद वैरिएंट अत्यंत दुर्लभ थे. शोधपत्र में कहा गया, ''पहचाने गए आनुवंशिक वैरिएंट व्यापक आनुवांशिक विविधता दर्शाते हैं जो भारतीय आबादी में अब तक दर्ज नहीं की गई थी.''

जीनोमइंडिया के संयुक्त राष्ट्रीय समन्वयक और हैदराबाद स्थित सीएसआइआर-सेंटर फॉर सेलुलर ऐंड मॉलीक्युलर बायोलॉजी में सीएसआइआर भटनागर फेलो डॉ. कुमारसामी थंगराज कहते हैं, ''यह तो बस शुरुआत भर है. जीनोमइंडिया टीम इन आनुवंशिक प्रकारों का अर्थ पता लगाने के लिए गहन विश्लेषण कर रही है.''

वे बताते हैं कि कुछ वैरिएंट बीमारी से जुड़े हो सकते हैं, जबकि दूसरे ड्रग को लेकर थेरेप्यूटिक/बुरे असर, संक्रामक बीमारियों को लेकर संवेदनशीलता/ प्रतिरोध या अनुकूलन से जुड़े हो सकते हैं. वे कहते हैं, ''9,772 व्यक्तियों की जीनोम सीक्वेंसिंग से जानकारी हासिल किए जाने के बाद हमारे पास भारतीय आबादी, उसके इतिहास और साथ ही चिकित्सा निहितार्थों के बारे में बेहद व्यापक जानकारी होगी.''

स्वास्थ्य देखभाल के नजरिए से पड़ने वाले असर का ताल्लुक मोटे तौर पर दो क्षेत्रों से है—व्यक्तिगत चिकित्सा और उन्नत डायग्नोस्टिक. पहले का मतलब यह है कि डॉक्टर आनुवंशिक रूपरेखा के आधार पर इलाज का खाका बना सकते हैं और व्यक्ति विशेष में दवाई की प्रतिक्रिया और खासकर प्रतिकूल प्रतिक्रिया को ध्यान में रखकर नुस्खे में दवाइयां लिख सकते हैं. डायग्नोस्टिक के क्षेत्र में जीनोमइंडिया प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारतीय आबादी के लिए जीनोटाइप या जीन प्रारूपों के संग्रह का खाका तैयार करना है, जिससे मौजूदा संग्रह में सुधार होगा. फिलहाल वैश्विक जीनोमिक परिदृश्य के मुख्य रूप से यूरो-केंद्रित होने के कारण दूसरी आबादियों पर बनाए गए मॉडलों की अपनी सीमाएं हैं.

जीनोमइंडिया के समन्वय केंद्र बेंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र में कार्यरत और प्रमुख जांचकर्ताओं में से एक ब्रताती कहाली का कहना है, ''भारत का यह जेनेटिक डेटासेट किसी व्यक्ति को टाइप 2 मधुमेह या अलजाइमर्स सरीखी बीमारियां होने के खतरों का अनुमान लगाने के लिए बेहतर मॉडल विकसित करने में मदद कर सकता है. ये पॉलीजेनिक बीमारियां हैं, जिसका मतलब यह है कि बीमार पड़ने का खतरा कई जीन और वातावरण के कारकों पर निर्भर करता है. कुल मिलाकर, इस शोध से हमें इसकी बेहतर समझ मिलेगी कि विभिन्न बीमारियों में जेनेटिक्स किस तरह भूमिका निभाता है.''

बायोबैंक स्थापित करने के मुश्किल काम को पूरा करने के बाद अब शोधकर्ताओं के सामने भारत के सबसे व्यापक आनुवंशिक अध्ययन से जानकारियां खोद निकालने की जिम्मेदारी है.

जीनोमइंडिया के जॉइंट नेशनल कोऑर्डिनेटर कुमारसामी तंगराज के मुताबिक,  9,772 व्यक्तियों की जीनोम सीक्वेंसिंग से जानकारी हासिल हो जाने के बाद हमारे पास भारतीय आबादी, उसके इतिहास और साथ ही चिकित्सा आयामों के बारे में बहुत व्यापक जानकारी होगी. 
 

शुरुआती निष्कर्ष

> हासिल किए गए आनुवांशिक वैरिएंट्स की कुल संख्या 18 करोड़ है

> अधिकांश वैरिएंट्स (64%) अत्यंत दुर्लभ हैं, इसलिए जटिल बीमारियों को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं

> यह डेटासेट भारतीय जेनेटिक प्रोफाइलों के लिए खास तौर पर तैयार सटीक दवाओं का रास्ता खोलेगा

> यह भारतीय आबादी के अनुकूल डायग्नोस्टिक टूल्स बनाने में मदद करेगा

जीनोम का खाका

भारत की आनुवंशिक विविधता की पहचान के लिए बड़ी संख्या में जातीय समूहों के नमूने लेकर देश का सबसे बड़ा अध्ययन किया गया और विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के सहयोग से पहला जीनोम डेटाबेस तैयार किया गया

- अजय सुकुमारन 

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