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बचपन में सीखी कुश्ती, फिर बदला खेल और दीपिका बन गईं हॉकी की स्टार खिलाड़ी!

पहलवानों के खानदान से ताल्लुक रखने वाली दीपिका कुमारी ने थोड़ा अलग रास्ता अख्तियार किया और वे अब हॉकी की दुनिया में शोहरत के सातवें आसमान पर हैं.

दीपिका कुमारी (फाइल फोटो)
दीपिका कुमारी (फाइल फोटो)
अपडेटेड 26 मई , 2025

यह तो हमें मालूम ही है कि हरियाणा की छोरियां खेलों की दुनिया में जोरदार मुक्के जड़ सकती हैं (स्वीटी बूरा), कुश्ती में पटखनी दे सकती हैं (साक्षी मलिक) और ओलंपिक कीर्ति पर निशाना लगा सकती हैं (मनु भाकर). लेकिन हॉकी में पेनाल्टी कॉर्नर से गोल भी कर सकती हैं क्या? जी हां, मिलिए भारतीय हॉकी की उभरती सितारा 21 वर्षीया दीपिका कुमारी से.

यह ड्रैग क्रिलकर इन दिनों सातवें आसमान पर है, और हो भी क्यों ना, बिहार महिला एशियाई चैंपियनशिप ट्रॉफी (2024) और ओमान में हुए महिला जूनियर एशिया कप (2024) में शीर्ष गोल स्कोरर और सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनने के बाद उन्होंने हॉकी इंडिया के अपकमिंग प्लेयर ऑफ द ईयर 2024 (महिला अंडर-21) के रूप में असुंता लाकड़ा अवार्ड जो जीता है.

पहलवानों के परिवार से ताल्लुक रखने वाली दीपिका ने भारतीय खेल प्राधिकरण के हिसार केंद्र में मैट पर अपने बड़े भाई को देखकर शुरुआत तो की. मगर उनका दिल हॉकी में था, जिससे यहीं उनकी मुलाकात हुई. डेढ़ साल किनारे खड़े रहकर देखने के बाद उन्होंने मन बना लिया: ''मैंने अपने पिता से कह दिया कि 'मुझे हॉकी में ही जाना है.

हॉकी नहीं तो कुछ नहीं खेलना.’’’ इस अल्टीमेटम को बचपन का विद्रोह मानकर खारिज कर दिया गया, लेकिन उनका मन रख लिया गया. वे कहती हैं, ''उन्हें (परिवार को) लगा कि मैं बड़ी होने के साथ इससे उबरकर कुश्ती में लौट आऊंगी.’’ उस वक्त 11 साल की दीपिका को बहुत छोटा माना जाता था, लेकिन फिर भी उन्होंने कोच आजाद सिंह मलिक को मनाने के लिए अपने पिता को मजबूर कर दिया.

कुश्ती में लौटने की बात तो बिसरा ही दी गई, जब दीपिका देखते ही देखते राज्य और जूनियर रैंक में आगे बढ़ती गईं और 2022 में उन्हें सीनियर टीम में शामिल होने का बुलावा मिला. हालांकि 2024 ही वह साल था जो अपनी गति और सटीकता से सभी का दिल जीत लेने वाली इस फॉरवर्ड खिलाड़ी के लिए कामयाबियों का साल रहा.

दीपिका मानती हैं कि दबाव और उम्मीदें बढ़ गई हैं, लेकिन इसी के साथ खरा उतरने और अपने खेल में सुधार लाने की उनकी जन्मजात भूख भी गई है. वे कहती हैं, ''अब टीम और देश दोनों की तरफ से बड़ी जिम्मेदारी है. मैं कड़ी मेहनत करना चाहती हूं ताकि सभी को गौरवान्वित महसूस करवा सकूं.

अच्छी बात यह है कि मेरी टीम के साथी मेरा साथ देते और मनोबल बढ़ाते हैं, खासकर जब उतार-चढ़ाव इस खेल का अनिवार्य हिस्सा हैं.’’ टीम का अभिन्न हिस्सा बन चुकीं दीपिका के लक्ष्यों में इस साल प्रो लीग और एशिया कप की तैयारी करना और अगले साल एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक जीतना और विश्व कप के पोडियम पर पहुंचना शामिल है.

अपने लंबे-चौड़े परिवार में खेल को करियर के तौर पर अपनाने वाली पहली लड़की होने के नाते दीपिका पिता के सहारे और समर्थन के लिए शुक्रगुजार हैं. उन्होंने अपने हाथ पर 'लाडो’ गुदवा रखा है. उनका परिवार प्यार से उन्हें इसी नाम से पुकारता है. दंगल सरीखी रुकावटें तो खैर नहीं थीं, लेकिन इकलौती बेटी को खेल में डालने को लेकर सवाल उठे ही. वे कहती हैं, ''कोई भेदभाव नहीं था. वे कहते थे 'तुम्हें जो अच्छा लगे, करो’.’’

दीपिका को उम्मीद है कि उनके और उनकी टीम की हरियाणवी साथी और आदर्श सविता पूनिया के कारनामे देखकर और भी ज्यादा लड़कियां हॉकी को अपनाने के लिए प्रेरित होंगी. वे कहती हैं, ''हरियाणा में आप बदलाव देख सकते हैं, दिलचस्पी बढ़ रही है और लड़कियों को बढ़ावा दिया जा रहा है. मगर कुछ गांवों में अब भी मानसिकता बदलने की जरूरत है.’’ उनके गोलों की धूमधाम शायद यह लक्ष्य भी हासिल कर ले.

पिछला साल दीपिका का सर्वश्रेष्ठ रहा. इस फॉरवर्ड ने रफ्तार और सटीकता से सबको चकित कर दिया.

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