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पहलगाम हमला: इस हैवानियत की सजा क्या?

कूटनीतिक आक्रामक पहल के बाद कुछ कठोर सामरिक विकल्प जिन्हें आजमा सकता है भारत

पहलगाम में आतंकी हमले में मारे गए लोगों के प्रति 23 अप्रैल को श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए गृह मंत्री अमित शाह
पहलगाम में आतंकी हमले में मारे गए लोगों के प्रति 23 अप्रैल को श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए गृह मंत्री अमित शाह
अपडेटेड 6 मई , 2025

भारतीय नौसेना में लेफ्टिनेंट 26 वर्षीय विनय नरवाल और उनकी पत्नी हिमांशी अपना हनीमून मनाने स्विट्जरलैंड जाने का सपना देख रहे थे लेकिन वीजा नहीं मिला तो उन्होंने पहलगाम का रुख किया. हरियाणा के करनाल में विवाह संपन्न होने के तुरंत बाद वे कश्मीर चले गए. अगले दिन यानी 22 अप्रैल को वे सैकड़ों अन्य पर्यटकों के साथ बैसरन के खूबसूरत अल्पाइन घास के मैदानों में घूमने निकले. हिमांशी कहती हैं, ''हमने सोचा भी नहीं था कि यह यात्रा दु:स्वप्न बन जाएगी."

दुल्हन वाले चूड़े पहने हिमांशी के हाथों की मेहंदी अभी सूखी भी नहीं है. उन्हें एक वीडियो में बिलखते हुए स्थानीय लोगों से कहते सुना जा सकता है, ''मैं अपने पति के साथ भेलपुरी खा रही थी. एक आदमी आया और उसने मेरे पति से पूछा कि क्या वे मुसलमान हैं? और, उनके नहीं कहते ही उसने गोली मार दी." देखते-देखते घास के खूबसूरत मैदान पर हर तरफ चीख-पुकार मच गई क्योंकि दहशतगर्दों ने 26 लोगों की जान ले ली थी.

इसी बीच एक फोटोग्राफर ने सुध-बुध भुलाकर अपने मृत पति के बगल में बैठी हिमांशी को कैमरे में कैद किया, जिनके कपड़े खून से सने थे और यह तस्वीर पूरे देश को इस मंजर की भयावहता दर्शाने का प्रतीक बन गई. अगले दिन विनय का पार्थिव शरीर अंतिम संस्कार के लिए गृहनगर लाया गया तो हिमांशी तिरंगे में लिपटे उनके ताबूत के सामने रो पड़ीं. उनकी जुबान पर यही शब्द थे, ''भगवान उनकी आत्मा को शांति दे, और जहां भी रहें, बहुत अच्छे से रहें."

देश के अन्य हिस्सों में भी पहलगाम हमले में मारे गए अन्य लोगों के शव अंतिम संस्कार के लिए उनके घर पहुंचे तो नजारा दिल दहला देने वाला था. कश्मीर में निर्दोष पर्यटकों की बेरहमी से हत्या, घाटी में आम लोगों पर दो दशकों से भी ज्यादा समय में सबसे भीषण आतंकवादी हमले की घटना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सऊदी अरब की अपनी यात्रा बीच में छोड़कर नई दिल्ली लौटने पर बाध्य कर दिया.

लौटने से पहले ही उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट किया, ''इस जघन्य कृत्य के पीछे जो लोग हैं, उन्हें न्याय के कठघरे में लाया जाएगा...उन्हें बख्शा नहीं जाएगा! उनका नापाक एजेंडा कभी सफल नहीं होगा." वापस लौटकर प्रधानमंत्री ने सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक बुलाई, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण हैं. उन्हे आतंकी हमले में सीमा पार पाकिस्तान से मिली शह के बारे में जानकारी दी गई.

भारत का जवाब

अब, सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या किया जाना है. नई दिल्ली के सामने कई कदम विकल्प के तौर पर सामने आए, जिन्हें माकूल ढंग से और माकूल समय पर अपनाया जा सकता है. एक तात्कालिक सख्त कदम के तौर पर सीसीएस ने 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का फैसला किया. विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने यह घोषणा करते हुए कहा, ''पाकिस्तान जब तक आतंकवाद को बढ़ावा और समर्थन देना विश्वसनीय तौर पर बंद नहीं करता, यह निलंबित रहेगी."

चार बार जंग के बाद भी दोनों देशों के बीच बरकरार रही 65 साल पुरानी इस संधि के तहत भारत सिंधु प्रणाली की पूर्वी नदियों सतलुज, ब्यास और रावी का जल उपयोग करता है, जबकि पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब से ज्यादातर पानी पाकिस्तान के हिस्से में आता है. संधि में कहा गया है कि बांधों या अन्य तरीकों से नदियों के प्रवाह को बदलने के लिए नई दिल्ली की तरफ से कोई भी कदम उठाने के लिए इस्लामाबाद से बातचीत करनी होगी.

भारत ने 2019 में पुलवामा हमले के बाद भी सिंधु जल संधि रद्द करने की चेतावनी दी थी लेकिन उस पर कोई ठोस कदम उठाने से पहले ही रुक गया. हालांकि, संधि की ''समीक्षा और संशोधन" की मांग उठाकर उसने सितंबर 2024 में ऐसा करने का इरादा दोहराया. लेकिन अब संधि को निलंबित कर उसकी बहाली के लिए कड़ी शर्ते रखकर भारत ने दरवाजे पूरी तरह बंद कर दिए हैं.

इस कदम से पाकिस्तान की जल सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा, खासकर पंजाब और सिंध जैसे घनी आबादी वाले और सियासी तौर पर ताकतवर प्रांतों पर. हालांकि, यह रोक पाकिस्तान को मिलने वाले जल के मौजूदा प्रवाह को बाधित नहीं करेगी. लेकिन भारत की तरफ से भविष्य में उठाए जाने वाले किसी भी एकतरफा कदम के नतीजे गंभीर हो सकते हैं. मसलन, नहरों या बांधों का निर्माण करके जल को अपने इस्तेमाल के लिए मोड़ने से पाकिस्तान में निचले इलाकों को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है.

इस्लामाबाद ने भारत की इस कार्रवाई को 'जंग छेड़ने जैसा' करार दिया है. भारत के लिए एक नुक्सान यही है कि अभी तक कश्मीर पर पाकिस्तान की दावेदारी धार्मिक आधार पर रही है, और इसकी जल आपूर्ति बाधित करने से देश में कश्मीर को लेकर लड़ाई के पक्ष में आम धारणा बदल सकती है. इस बीच, पाकिस्तान ने अपने हवाई क्षेत्र में भारतीय विमानों की आवाजाही को प्रतिबंधित कर दिया है और 1972 के शिमला समझौते को भी निलंबित कर दिया है.

सिंधु जल संधि निलंबित करने के अलावा सीसीएस ने कई अन्य कूटनीतिक प्रतिबंधों की घोषणा भी की है, जिसमें अमृतसर में अटारी में सीमा चौकी बंद करना, दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में रक्षा अताशे और उनके वरिष्ठ सलाहकारों का निष्कासन और पाकिस्तानी नागरिकों को जारी सार्क वीजा रद्द करना शामिल है. सरकार साफ कर चुकी है कि अभी और कड़े कदम उठाए जाएंगे.

ग्राफिक : नीलांजन दास

बिहार के मधुबनी में 24 अप्रैल को एक सभा में प्रधानमंत्री ने पूरी दुनिया को संदेश दिया. हिंदी भाषण के बीच में उन्होंने अंग्रेजी में घोषणा की, ''आज, बिहार की धरती से मैं पूरी दुनिया को बता देना चाहता हूं, भारत हर आतंकवादी और उनके आकाओं की पहचान करेगा, उन्हें ढूंढ निकालेगा और उन्हें दंडित करेगा. हम उन्हें पाताल से भी खोज निकालेंगे और ऐसा दंड देंगे जिनकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी."

मोदी पाकिस्तान को स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि भारत लक्ष्मण रेखा पार करने पर पाकिस्तान को दंड देने के लिए सैन्य बल के इस्तेमाल समेत सभी विकल्पों को अपनाने में संकोच नहीं करेगा. पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल का मानना है कि अतीत की तरह सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करने के बजाए सिंधु जल संधि स्थगित करने का विकल्प अपनाकर भारत ने एक शक्तिशाली संदेश भेजा है कि वह ऐसे वार करेगा जिससे उसे सबसे ज्यादा चोट पहुंचेगी.

साथ ही, सिब्बल यह तर्क भी देते हैं, ''भू-राजनैतिक स्थिति और अन्य पहलुओं के लिहाज से भारत के लिए यह पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष में उतरने का उचित समय नहीं है. हम अपनी भावनात्मक संतुष्टि के लिए यह सोच तो सकते हैं लेकिन इस दिशा में कदम बढ़ाने से विकास के एजेंडे पर बढ़ती साख और लक्ष्य से भटक जाएंगे. हम यह मानते रहे हैं कि यह युद्ध का युग नहीं है, संवाद और कूटनीति ही इसका उचित समाधान है. इसलिए, हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विश्वसनीयता गंवा देंगे."

सिब्बल यह भी कहते हैं, वैसे तो भारत के पास व्यावहारिक सैन्य विकल्प हैं लेकिन सिंधु जल संधि स्थगित करना अधिक प्रभावी होगा क्योंकि जल सुरक्षा पाकिस्तान के लिए एक अहम मुद्दा है. ''यह पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक झटका साबित होगा."

कुछ लोगों का तर्क है, सिंधु जल संधि जैसे धीमी गति से असर दिखाने वाले दंडात्मक उपाय भारतीय जनमानस को संतुष्ट करने के लिए काफी नहीं हैं. देश में लोगों की बेरहमी से हत्या को लेकर जबरदस्त आक्रोश है और हर कोई चाहता है कि मोदी सरकार सैन्य बल के माध्यम से हमलों का बदला ले. भारत ने 2016 में उड़ी और 2019 में पुलवामा हमलों के बाद ऐसा किया था.

श्रीनगर के लाल चौक में कश्मीरी कारोबारियों का कैंडल लाइट विजिल, 23 अप्रैल

उड़ी में 18 सितंबर, 2016 को पाक समर्थित जैश-ए-मोहम्मद के चार दहशतगर्दों ने भारतीय सेना की ब्रिगेड इकाई पर हमला किया, जिसमें 19 सैनिक शहीद हो गए. भारत ने भी जवाब में कड़ी कार्रवाई की. दस दिन बाद ही भारतीय सेना के कमांडो ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार की और सर्जिकल हमले में आतंकी लॉन्च-पैड और शिविर नेस्तोनाबूद कर दिए.

इसमें 150 से ज्यादा आतंकियों को मारने का दावा किया गया. 2019 में पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती वाहन बम हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 40 जवानों की शहादत के बाद भारत के 12 मिराज 2000 जेट विमानों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के शिविर पर बमबारी कर जोरदार हमला किया. 1971 के युद्ध के बाद यह पहला मौका था जब सीमा पार हमले के लिए भारतीय वायु सेना को तैनात किया गया था.

रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी और पाकिस्तान पर कई किताबें लिख चुके तिलक देवशेर का कहना है, "जनता बदला चाहती है और उड़ी तथा पुलवामा के जवाबी हमलों ने इतनी लंबी लकीर खींच दी है कि लोगों को आश्वस्त करने के लिए मोदी सरकार को बड़ा कदम उठाना होगा. इसे कब और कैसे करना है, यह तो सरकार को ही तय करना है. लेकिन खासकर इस मामले में आप जितना ही ज्यादा तर्कहीन विकल्प चुनेंगे, उतने ही ज्यादा प्रभावी साबित होंगे."

वैसे तो मोदी सरकार के पास कई सैन्य विकल्प मौजूद हैं लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्पष्ट होना चाहिए कि हम चाहते क्या हैं और इसका नतीजा क्या होगा. घाटी में लंबे समय तक तैनात रह चुके लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कहते हैं, ''मेरा मानना है, मौजूदा संघर्ष विराम को तोड़ने जैसे कदमों के साथ शुरुआत करने से कुछ हासिल नहीं होगा. हमारे पास कई विकल्प हैं."

हसनैन की स्पष्ट राय है कि भारत की प्रतिक्रिया सिर्फ जन भावनाएं शांत करने के लिए पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने से आगे बढ़कर होनी चाहिए.

वे कहते हैं, "हमें स्पष्ट करना होगा कि हम अपनी क्षमता के बारे में पाकिस्तान को संदेश दे रहे हैं या फिर दुनिया को. हमने उड़ी में सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट में हवाई हमलों के साथ अपनी क्षमता को दिखाया है. क्या इस बार भी हम ऐसे कदमों को पहले की तरह आतंकवादी ठिकानों तक सीमित रखेंगे या फिर दायरा बढ़ाकर सीधे पाकिस्तानी सेना को निशाना बनाएंगे, जो युद्ध के बराबर होगा? इसलिए, असली सवाल यह है कि हम शुरुआत कैसे करेंगे और अंत में क्या हासिल करना चाहते हैं."

पाकिस्तान में उथल-पुथल

जानकारों का कहना है कि ऐसे हमले के जवाब में बढ़ते तनाव पर काबू पाने के लिए भारत को सबसे पहले पाकिस्तान के अंदरूनी हालात को समझना होगा. खास तौर पर यह कि आखिर किस वजह से उसने इतना बड़ा आतंकी हमला किया और उसके लिए किन ठिकानों को चुना, जबकि उसे मालूम था कि भारत जवाबी कार्रवाई करेगा.

पाकिस्तान में उच्चायुक्त रह चुके शरत सभरवाल के मुताबिक, हमले का वक्त इससे ज्यादा रणनीतिक नहीं हो सकता था. अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वैंस भारत में थे और मोदी सऊदी अरब की द्विपक्षीय यात्रा पर थे. ऐसे में दुस्साहसिक हमला यकीनन दुनिया भर का ध्यान खींचेगा और यह संकेत देगा कि पाकिस्तान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

सभरवाल का मानना है कि दूसरी वजह 2019 में अनुच्छेद 370 को रद्द करने और फिर जम्मू-कश्मीर में कुछ वक्त पहले हुए विधानसभा चुनाव से पैदा हुई सामान्य स्थिति की धारणा को तोड़ना था. यह इस क्षेत्र में पर्यटकों की आमद में सबसे ज्यादा जाहिर था. जम्मू-कश्मीर में पिछले साल 2.3 करोड़ लोग सैर-सपाटे के लिए पहुंचे थे, जबकि 2018 में 1.7 करोड़ की आमद हुई थी. पहलगाम में पर्यटकों को निशाना बनाकर, पाकिस्तान ने न सिर्फ राज्य की इस आर्थिक बहाली पर चोट की, बल्कि भारत और दुनिया को यह भी बता गया कि घाटी में वह भी एक किरदार है.

लेकिन हमले के वक्त का पाकिस्तान की अपनी नाकामियों से भी लेना-देना है, खासकर सबसे ताकतवर फौज प्रमुख जनरल आसिम मुनीर से बड़े पैमाने पर नाराजगी बढ़ रही है और देश को भारी संकटों को पार करने की उनकी काबिलियत शक के दायरे में है. 11 मार्च को बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के जाफर एक्सप्रेस ट्रेन का अपहरण मुनीर के लिए गंभीर झटका था, जिसमें 18 फौजियों सहित 31 लोग मारे गए थे.

पाकिस्तानी फौज लंबे समय से भारत पर बलूच विद्रोहियों को मदद करने का आरोप लगाती रही है और फौज में कई पहलगाम हमले को इस्लामाबाद की ओर से जोरदार चेतावनी मानते हैं कि भारत उसके अंदरूनी मामलों में दखल न दे. इस बीच, पाकिस्तान को अपनी पश्चिमी सीमाई इलाके में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है.

टीटीपी पश्तून मुहिम है, जो पाकिस्तान सरकार को उखाड़ कर इस्लामी अमीरात की स्थापना चाहता है. उसे अफगानिस्तान में तालिबान की शह हासिल है. सिब्बल कहते हैं, ''पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में तालिबान को कायम किया, जब वह सत्ता में वापस आया तो वह बहुत खुश हुआ और अब वे एक-दूसरे पर बमबारी कर रहे हैं. यह उसकी रणनीतिक नाकामी है."

सियासी मोर्चे पर, विभिन्न आरोपों में जेल में रहने के बावजूद इमरान खान पाकिस्तान के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं. 2023 में, उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थकों ने विरोध में लाहौर कोर कमांडर के घर पर धावा बोल दिया था. मुनीर ने सख्त कार्रवाई की और फौज में पीटीआई समर्थकों को भी बर्खास्त कर दिया, लेकिन इससे फौज की साख को बट्टा लगा. उधर, शहबाज शरीफ की अगुआई में गठबंधन सरकार का वजूद फौज के आसरे बताया जाता है.

सत्तारूढ़ गठबंधन के बड़े सहयोगियों, शहबाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) या पीएमएल (एन) और उसकी एक वक्त धुर विरोधी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) के बीच कलह से ज्यादा परेशानी बढ़ रही है, जिसके राष्ट्रपति आसिफ जरदारी सह-अध्यक्ष हैं. हाल में दोनों सियासी पार्टियों के बीच दक्षिणी पंजाब के चोलिस्तान को सिंधु नदी का पानी मुहैया कराने के लिए एक नहर परियोजना को लेकर टकराव चरम पर पहुंच गया.

सिंध प्रांत की सरकार चलाने वाली पीपीपी ने शिकायत की कि इस परियोजना से उनके हिस्से का पानी घट जाएगा. उसके नेता बिलावल जरदारी भुट्टो ने यहां तक धमकी दी कि अगर मुद्दा नहीं सुलझा तो वे गठबंधन से बाहर निकल जाएंगे. ऐसे में सिंधु जल संधि को स्थगित करने का भारत का कदम टकराव को बढ़ा सकता है और पाकिस्तान कदम रोकने पर मजबूर कर सकता है.

पाकिस्तान के लिए राहत अर्थव्यवस्था में सुधार के मामूली संकेत से है. उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के 7 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज की पहली किस्तों से काफी मदद मिली है. अच्छा संकेत यह है कि देश की जीडीपी पिछले साल 2.5 फीसद की दर से बढ़ी. यह 2023 में 337 अरब डॉलर थी, जबकि भारत की 35 खरब डॉलर.

पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया कहते हैं, ''बेशक अर्थव्यवस्था आईसीयू से बाहर आ गई है, लेकिन अभी भी क्रिटिकल केयर वार्ड में है. वह फिर गोता लगा सकती है क्योंकि अभी तक विकास के लगातार बढ़ने के लिए कोई ढांचागत फेरबदल नहीं हो पाए हैं."

लगता है कि मुनीर ने इस मामले में भी अपना असर बढ़ाया है. पिछले साल जुलाई में शहबाज ने विशेष निवेश सुविधा काउंसिल (एसआईएफसी) का गठन किया और मुनीर को उसका सदस्य बनाया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की दलील थी कि काउंसिल देश को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के खातिर ''एकजुट नजरिए" के लिए जरूरी थी, क्योंकि उन्होंने इसे आर्थिक नीतियां बनाने का काम सौंपा है. फौज के उच्च अधिकारी शीर्ष समिति और कार्यकारी समिति दोनों में होंगे.

नवंबर 2022 में फौज की कमान संभालने वाले मुनीर ने पिछले नवंबर में संसद में पारित एक खास कानून के जरिए यह भी तय कर लिया है कि वे तीन के बजाए पांच साल तक इस पद पर बने रहेंगे. लेकिन फौज की साख घटने से, खासकर बलूच विद्रोहियों के ट्रेन अपहरण और पाकिस्तान भर में बढ़ते आतंकी हमलों के बाद वे देश में अंदरूनी संकटों से ध्यान हटाने के लिए कश्मीर मुद्दे को भड़काना चाहते हैं.

पहलगाम हमले से छह दिन पहले 16 अप्रैल को इस्लामाबाद में ओवरसीज पाकिस्तानियों के सम्मेलन में एक भाषण में मुनीर ने कश्मीर का हवाला देकर कहा, ''हमारा रुख बिल्कुल साफ है, यह (कश्मीर) हमारे लिए जीने मरने का सवाल था और रहेगा, हम उसे भूलेंगे नहीं. हम अपने कश्मीरी भाइयों को उनकी बहादुराना लड़ाई में अकेला में नहीं छोड़ेंगे."

उसी तकरीर में मुनीर ने द्वि-राष्ट्र सिद्धांत और उसकी प्रासंगिकता का भी जिक्र किया, जो बिसारिया के लिए 1980 के दशक में जनरल जिया-उल-हक के इस्लामी कट्टरता की याद दिलाता है.

वे कहते हैं, ''जनरल मुनीर मूल रूप से झंडे के इर्द-गिर्द लोगों को लामबंद करने और विदेशों में रहने वाले पाकिस्तानियों के बीच इमरान के समर्थन को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे. वे फौज के लिए समर्थन भी जुटा रहे थे और कश्मीर मुद्दे को उठाकर मुल्ला-मौलवी और फौज के गठबंधन को मजबूत करने के अलावा अपनी अंदरूनी स्थिति को मजबूत करने की उम्मीद कर रहे थे." जानकार इसे मुनीर के भारत के साथ तनाव बढ़ाने और शायद पहलगाम हमले को शह देने का बड़ा जोखिम उठाने की खास वजह मानते हैं.

सभरवाल का मानना है कि पाकिस्तान के हमले की तैयारी के स्पष्ट संकेत थे. हमले से पहले सरकार और फौज ने भारत पर बलूचिस्तान में दखलअंदाजी के खिलाफ कड़े बयान जारी किए थे और उग्रवादियों और उनके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी थी. 2021 से एलओसी पर संघर्ष विराम लागू होने के बावजूद, हाल के हफ्तों में फिर से सीमा पर कई वारदात हुई हैं.

पिछले साल भी, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव से पहले, पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने जम्मू क्षेत्र में कई आतंकी हमले किए थे, जिसमें रियासी में बस में जा रहे नौ तीर्थयात्रियों की हत्या शामिल थी. अक्टूबर में उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक और हमला हुआ, जब गांदेरबल में छह प्रवासियों और एक डॉक्टर को निशाना बनाया गया. जानकारों का कहना है कि सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क रहना चाहिए था, खासकर पहलगाम जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल पर, और इन क्षेत्रों में तैनाती बढ़ानी चाहिए थी.

इसलिए, घाटी में तैनात बलों को खुफिया जानकारी में नाकामी के साथ-साथ सेना द्वारा 'क्षेत्रीय दबदबा' कहे जाने वाले क्षेत्र पर गौर करने की जरूरत है, ताकि पाकिस्तान की शह वाले हमलों को रोका जा सके. सैन्य अभियानों के पूर्व महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया फौरन जवाबी हमले की जरूरत पर जोर देते हैं. वे कहते हैं, ''सुरक्षा बलों को सबसे पहले हमला करने वाले चार आतंकवादियों को खोजकर उनका खात्मा करना चाहिए. सैन्य कार्रवाई की खास रणनीति है वक्त, जगह और चौंकाने वाले हमले का सटीक चुनाव. कार्रवाई सक्चत और हमारे चुने वक्त और जगह पर होनी चाहिए."

भारत के सामने विकल्प

एक प्रमुख सैन्य रणनीतिकार के मुताबिक भारत को पाकिस्तान के खिलाफ बहुआयामी धावा बोलना चाहिए. ऐसा धावा जिसका दायरा कूटनीतिक, आर्थिक, सैन्य, राजनैतिक और सूचना क्षेत्रों तक फैला हो. अनुच्छेद 370 के रद्द करने के बाद दोनों देशों ने एक दूसरे के उच्चायुक्तों को निकाल दिया था, ऐसे में मिशन के कर्मचारियों की संख्या कम करने की मौजूदा दंडात्मक कार्रवाई न्यूनतम संभव कार्रवाई ही है. दोनों देशों के बीच दोतरफा व्यापार भी बहुत कम रह गया है, इसलिए भारत आर्थिक पाबंदियां लगाने के मामले में भी ज्यादा कुछ नहीं कर सकता.

अलबत्ता वह यह कर सकता है कि आंतकवाद के वित्तपोषण की निगरानी करने वाले वैश्विक पहरेदार संगठन एफएटीएफ (फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स) का इस्तेमाल करके पाकिस्तान को आतंकी धड़ों को पालने-पोसने की सजा देने के लिए दुनिया के बड़े देशों को एकजुट करे. इससे आईएमएफ सरीखे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों तक पाकिस्तान की पहुंच पर रोक लग सकती है.

सभरवाल प्रच्छन्न और गुप्त विकल्पों की भी वकालत करते हैं, जिनमें जेईएम और लश्कर-ए-तय्यबा के शीर्ष सरगनाओं सहित पाकिस्तान की नामी-गिरामी शख्सियतों को इस तरह निशाना बनाया जाए कि कोई उंगली भी न उठा सके. आखिरकार ये एलईटी का एवजी द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) और जेईएम का संगठन पीपल्स ऐंटी-फासिस्ट फ्रंट (पीएएफएफ) ही हैं जिन्होंने पहलगाम के कत्लेआम की जिम्मेदारी ली है.

आंतरिक उग्रवादियों के आगे पाकिस्तान कितना लाचार है यह 2009 में तभी जाहिर हो गया था जब स्थानीय आतंकी धड़ों ने रावलपिंडी में फौज के बेहद किलेबंद जनरल हेडक्वार्टर्स पर धावा बोल दिया था. उन्होंने सशस्त्र बलों के जवानों को बंधक बना लिया और फौज इन उग्रवादियों को मारकर अपना नियंत्रण फिर हासिल कर पाती, उससे पहले एक ब्रिगेडियर और एक लेफ्टिनेंट की हत्या कर दी थी.

प्रत्यक्ष दंडात्मक सैन्य कार्रवाई की बात करें तो भारत के पास कई सारे और कई तरह के विकल्प हैं. श्रीनगर की 15 कोर के पूर्व जीओसी लेफ्टि. जनरल के.जे.एस. ढिल्लों के मुताबिक, ''सेना ने एरिया-स्पेसिफिक और डेप्थ-स्पेसिफिक विकल्प तैयार किए हैं, जिनमें उथले से लेकर गहरे हमले और एक या सेना के तीनों अंगों की कार्रवाइयां शामिल हैं. ये पूर्व-नियोजित हैं, रिहर्सल की जा चुकी है और मंजूरी मिलने पर अमल के लिए तैयार हैं. जवाब रणनीतिक, समयबद्ध और पाकिस्तान को भारी नुक्सान पहुंचाने के लिए काफी ज्यादा और कुचल देने वाली बदले की कार्रवाई के उद्देश्य से होगा."

उत्तरी सेना कमांडर के रूप में 2016 में उड़ी की सर्जिकल स्ट्राइक की अगुआई करने वाले लेफ्टि. जनरल दीपेंद्र सिंह हुड्डा का मानना है कि भारत सबसे पहले एलओसी पर मौजूदा युद्धविराम समझौते को तिलाजंलि दे सकता है और चुनिंदा निशानों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने पर विचार कर सकता है.

वह बालाकोट की तरह आंतकी ढांचे को निशाना बनाने के लिए वायु सेना का इस्तेमाल कर सकता है. भारत की ताजातरीन खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में एलओसी के नजदीक 42 सक्रिय आतंकवादी लॉन्चपैड हैं, जिनमें पाकिस्तानी नागरिकों सहित 110-130 आतंकवादी हैं.

कुछ रणनीतिकार 'बालाकोट प्लस’ विकल्प की वकालत करते हैं जिसमें पृथ्वी सीरीज और प्रलय, हाइपरसोनिक शौर्य मिसाइल और ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलों सहित भारत की कम दूरी की टैक्टिकल बैलिस्टिक मिसाइलों का प्रयोग शामिल होगा. ये सभी प्रणालियां युद्ध के मैदान मंल इस्तेमाल के लिए तैयार की गई हैं. हालांकि हुड्डा मिसाइलों के इस्तेमाल के खिलाफ आगाह करते हैं, खासकर जब पाकिस्तान के पास भी परमाणु मिसाइलें हैं और स्थिति तेजी से संपूर्ण युद्ध में बदल सकती है.

विशेषज्ञ राजनैतिक तबकों की तरफ से की जा रही पीओके को वापस लेने की उग्र राष्ट्रवादी मांगों के आगे झुकने के खिलाफ भी आगाह करते हैं. सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि एलओसी के नजदीक कुछ जगहों पर भला कब्जा कर लें, लेकिन पूरे पीओके को हासिल करने का मतलब तीन साल लंबा युद्ध भी हो सकता है, कुछ उसी तरह जैसे यूक्रेन के मामले में रूस को पता चल रहा है.

हुड्डा के मुताबिक, ''यह लंबा अभियान होगा, जिसमें एलओसी पर भारतीय तैनाती के बराबर पाकिस्तान तैनाती होगी.’’ उनका कहना है कि परेशानी शायद यहीं खत्म न हो. ''एक बार जब आप इस पर कब्जा कर लेंगे, तो ऐसा नहीं है कि वहां रह रहे लोग भारत का स्वागत करेंगे. हो सकता है बगावत सहित दूसरी परेशानियां ही आपके हाथ लगें."

पाकिस्तान परमाणु-शस्त्र-संपन्न राष्ट्र भी है जिसने 'पहले इस्तेमाल नहीं करने’ के सिद्धांत को तिलांजलि दे दी है. अगर उसकी भूभागीय अखंडता खतरे में पड़ती है, तो वह इससे हिचकिचाएगा नहीं. इसलिए परमाणु युद्ध का जोखिम ज्यादा है. भारत का जवाब नपा-तुला होना चाहिए, जिसमें संयम और सटीकता हो.

एक और अहम निर्णायक मोड़ यह है कि घाटी के लोगों ने पहलगाम में सैलानियों पर हमले का विरोध किया. तमाम रंग-रूप के राजनैतिक दलों ने इसकी निंदा की; कइयों ने सार्वजनिक प्रदर्शनों में हिस्सा लिया. जब राजनैतिक और आम लोगों के जज्बात पक्ष में हैं, तो भारत को ज्यादा एहतियात बरतनी चाहिए ताकि नैतिकता की ऊंची कुर्सी पर विराजमान रहते हुए वह पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे सके.

—साथ में प्रदीप आर. सागर

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पाकिस्तान को जवाब देने के विकल्प

इस्लामाबाद को सीमा पार आतंकवाद को लंबे समय से शह देने के लिए भारी कीमत चुकाने को भारत के पास कुछेक विकल्प हैं. हालांकि, हरेक के अपने फायदे और नुक्सान हैं. उसके नतीजे सिर्फ हमारे अड़ियल पड़ोसी तक सीमित नहीं 

हवाई हमले

एक मिसाल 2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत का हवाई हमला है, जिसमें 12 मिराज जेट की टुकड़ी ने पाकिस्तानी वायु सेना को चकमा दिया, भीतर तक घुसे और खैबर पख्तूनख्वा के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के शिविर पर बमबारी की.

उसके बाद जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान ने जवाबी हवाई हमले किए. भारतीय वायु सेना के राफेल जेट (फोटो में) बेहतरीन मल्टीरोल लड़ाकू विमानों में से एक हैं, सो यह एक विकल्प है. भारत मुरीदके और उसके आसपास लश्कर के मुख्यालय को निशाना बना सकता है.

नतीजा: पहलगाम की घटना के बाद पाकिस्तान ने अपने ज्यादातर हवाई लाव-लश्कर लाहौर और रावलपिंडी को रवाना कर दिए हैं. उसके एयरबोर्न और अर्ली वार्निंग ऐंड कंट्रोल (एईडब्ल्यूऐंडसी) विमान भी भारतीय हवाई क्षेत्र पर नजर रख रहे हैं.

मिसाइल हमला

सरहदी मोर्चे पर लड़ाई के लिए लामबंद होने के बजाए, भारत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और अन्य जगहों पर कम दूरी की सामरिक जैसे पृथ्वी, प्रलय (फोटो में) और शौर्य के साथ आतंकी लॉन्च-पैड/प्रशिक्षण केंद्रों को निशाना बना सकता है. ये सभी सीमा पार रणनीतिक लक्ष्यों को भेदने के लिए काबिल हैं.

नतीजा: पाकिस्तान का आतंकी ढांचा सशस्त्र बलों के करीबी शिविरों में हो सकता है. अगर भारतीय मिसाइल हमला पाकिस्तानी फौज की किसी टुकड़ी पर होता है, तो इससे बड़ी लड़ाई छिड़ जाएगी. चिंता की बात यह भी है कि पाकिस्तान के पास सामरिक एटमी हथियारों से लैस मिसाइलें हैं.

सिंधु नदी की धारा का प्रवाह घटाना

 भारत ने सिंधु जल संधि को पहले ही निलंबित कर दिया है, जिसके तहत सिंधु प्रणाली की नदियों को दोनों देशों के बीच बांटा गया है. हालांकि इससे पाकिस्तान पर फौरन कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर भारत नहरों या बांधों का निर्माण करके धारा को रोक या मोड़ देता है, तो पाकिस्तान के पंजाब और सिंध के निचले तटवर्ती क्षेत्रों में भारी असर होगा.


नतीजा: पाकिस्तान ने ऐलान किया है कि सिंधु की धारा को मोड़ने की कोई भी कोशिश ''जंग जैसी" होगी.

सर्जिकल स्ट्राइक

भारतीय सेना के विशेष बल या कमांडो यूनिट नियंत्रण रेखा पार कर जैश-ए-मोहम्मद/लश्कर-ए-तय्यबा के आतंकी शिविरों पर हमला कर सकते हैं. सितंबर 2016 में उड़ी हमले के बाद ठीक यही हुआ था. भारतीय कमांडो ने कई हमले किए और दावा किया कि उन्होंने 150 से ज्यादा आतंकवादियों को मार गिराया.

नतीजा: पहले एक बार ऐसी वारदात झेल चुकी पाकिस्तानी फौज की सीमा पर टुकड़ियां ऐसी किसी भी स्थिति के लिए हाई अलर्ट पर होंगी. सर्जिकल स्ट्राइक का इस्तेमाल आतंकी ढांचे पर हवाई हमले के साथ किया जा सकता है.

राजनयिक दबाव

आतंकवादी गुटों को पनाह देने के लंबे, संदिग्ध रिकॉर्ड के साथ, पाकिस्तान वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की 'ग्रे लिस्ट’ में तीन बार रह चुका है, जो आतंकवाद के वित्तपोषण और मनी लॉन्ड्रिंग पर वैश्विक निगरानी संस्था है, जिसमें सबसे हालिया अवधि 2018-22 है. पाकिस्तान आईएमएफ के कर्ज पर आश्रित है, इसलिए एफएटीएफ सूची में एक और बार रहना उसके लिए विनाशकारी होगा.

नतीजा: पहलगाम के बाद भारत को सभी प्रमुख देशों का समर्थन प्राप्त है; हमारे राजनयिक उन्हें बाखबर कर रहे हैं. पाकिस्तान के पास कूटनीतिक झटके की उम्मीद करने के लिए पर्याप्त कारण हैं. दूसरा विकल्प है कि भारतीय नौसेना उसके बंदरगाहों की नाकाबंदी करके उसकी अर्थव्यवस्था को पंगु बना दे लेकिन इसे युद्ध की घोषणा के समान अत्यधिक शत्रुतापूर्ण कार्य माना जाएगा.

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जानकारों के मशविरे

"भारत मौजूदा नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम समझौते को तोड़ने और चुनिंदा लक्ष्यों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने की सोच सकता है. बालाकोट में की गई कार्रवाई की तरह ही भारतीय वायु सेना की भी तैनाती की जा सकती है."

—ले.जन. दीपेंद्र सिंह हुड्डा (रि.), पूर्व प्रमुख, उत्तरी कमान, भारतीय थल सेना

"कश्मीर मुद्दे को नए सिरे से उठाकर पाकिस्तानी फौजी हुक्मरान जनरल मुनीर अपनी अंदरूनी हालत को मजबूत करने और मुल्ला-मिलिटरी गठजोड़ को मजबूत करने की उम्मीद पाले हैं."

अजय बिसारिया, पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त

 

"हमारे सामने यह साफ होना चाहिए कि हम अपनी ताकत के बारे में पाकिस्तान को संदेश देना चाह रहे हैं या दुनिया को.... इसलिए, यह सटीक आकलन का सवाल है और अंत में यह कि आप आखिर हासिल क्या करना चाहते हैं."

ले. जन. सैयद अता हसनैन (रि.), पूर्व सैन्य सचिव, सेना मुख्यालय

"भारत गुप्त विकल्पों का इस्तेमाल कर सकता है, जिनमें जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तय्यबा के शीर्ष नेताओं को निशाना बनाना शामिल है. लेकिन यह पूरी तरह से पक्का करना होगा कि निशाने पर वही लोग लिए गए हैं."

—शरत सभरवाल, पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त

"जनमत बदले की मांग कर रहा है और जब आपने उड़ी और पुलवामा में जवाबी कार्रवाई के बाद इतना ऊंचा मानदंड स्थापित कर दिया है, तो मोदी सरकार को लोगों को आश्वस्त करने के लिए बहुत निर्णायक कार्रवाई करनी होगी."

—तिलक देवशेर, लेखक तथा पूर्व रॉ अधिकारी

"सिंधु जल संधि को स्थगित करने का विकल्प चुनकर भारत ने बेहद कड़ा संदेश दे दिया है... मौजूदा भू-राजनैतिक और दूसरी स्थितियों के मद्देनजर भारत के लिए पाकिस्तान के साथ सैन्य टकराव में उलझने का यह गलत समय है."

—कंवल सिब्बल, पूर्व विदेश सचिव.

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