मध्य प्रदेश में सरकार की स्थिरता को लेकर कोई सवाल नहीं है. वह पहले से ही स्थिर है क्योंकि सत्तारूढ़ भाजपा के पास विधानसभा की 230 में से 164 सीटें हैं. लेकिन नौकरशाहों के कार्यकाल की स्थिरता के बारे में ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता.
यहां तक कि मुख्यमंत्री सचिवालय में भी, जहां आमतौर पर मुख्मंत्री खुद ही अधिकारियों का चयन करते हैं. मोहन यादव के कार्यकाल के 19 महीनों के दौरान शीर्ष और मध्य स्तर पर कुल 19 आइएएस अधिकारी मुख्यमंत्री सचिवालय आए और चले गए.
राज्य में सबसे ताकतवर विभाग में कार्यकाल के बारे में इस अभूतपूर्व अस्थिरता से यह सवाल खड़ा होता है—क्या मुख्यमंत्री को अपनी भरोसेमंद टीम नहीं मिल पा रही है? या क्या वे दूसरों के फैसलों को मानते हैं?
ये तेजी से होने वाली घटनाएं हैं जिन पर करीब से नजर रखने के बाद भी आपको कुछ समझ नहीं आएगा. दिसंबर 2023 में यादव के कार्यभार संभालने के तुरंत बाद 1997 बैच के आइएएस अधिकारी राघवेंद्र सिंह को सीएमओ में प्रमुख सचिव के रूप में तैनात किया गया; 2008 बैच के आइएएस अधिकारी भरत यादव सचिव बने. कुछ ही महीनों में दोनों के बीच तालमेल की कमी की खबरें आने लगीं.
जून 2024 में इससे दो और अधिकारी जुड़ गए—राजेश राजोरा और संजय शुक्ल और वे दोनों क्रमश: अतिरिक्त मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव बने. अक्तूबर में 1989 बैच के आइएएस अधिकारी अनुराग जैन मुख्य सचिव के रूप में शामिल हुए—अफसरों के फेंटे जाने पर नई दिल्ली का हाथ होने की अटकलें लगने लगीं.
इसके तुरंत बाद ही राघवेंद्र सिंह और शुक्ल का तबादला कर दिया गया. जनवरी 2025 में सचिव यादव की जगह उनके बैचमेट सिबी चक्रवर्ती को नियुक्त किया गया. जुलाई की शुरुआत में 1993 बैच के आइएएस अधिकारी नीरज मंडलोई ने राजोरा की जगह ली. दो हफ्ते बाद चक्रवर्ती भी चलते बने; उनकी जगह चंद्रमौलि शुक्ल आए.
विश्वास की परंपरा
शीर्ष सूत्र इन सभी नियुक्तियों पर मुख्यमंत्री की सहमति की पुष्टि करते हैं. लेकिन सीएमओ में स्थायित्व क्यों नहीं है? इसकी तुलना पिछले मुख्यमंत्रियों के शासनकाल से करिए जिसकी विशेषता स्थिर कार्यकाल होती थी. शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में इकबाल सिंह बैंस ने सीएमओ में दो कार्यकाल पूरे किए. दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में आर.एन. बेरवा और आर. गोपालकृष्णन काफी समय तक सीएमओ में रहे.
इस दौर में वह साफ तौर पर गायब दिखता है. वरिष्ठ राजनैतिक टिप्पणीकार और मध्य प्रदेश पर नजर रखने वाले गिरिजा शंकर कहते हैं, ''स्थिर कार्यकाल पक्का करने के लिए मुख्यमंत्री को सबसे पहले अपने नौकरशाहों पर विश्वास करना होगा. प्रमुख पदों पर लाए गए अधिकांश अधिकारी मुख्यमंत्री के साथ उस समय काम कर चुके थे जब वे मंत्री या पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष या फिर मुख्यमंत्री के गृहनगर उज्जैन में उनकी तैनाती थी. डेढ़ साल हो गया. अब तक तो उनके पास अपनी टीम होनी चाहिए थी.''
मुख्यमंत्री कार्यालय सभी राज्यों में अहम होता है. पर मध्य प्रदेश में यह और भी अहम बन गया है क्योंकि खुद मुख्यमंत्री यादव के पास 11 प्रमुख विभाग हैं—गृह, वन, खनन, उद्योग, सामान्य प्रशासन, नागरिक उड्डयन, जेल, जनसंपर्क, लोक सेवा प्रबंधन, एनआरआइ और नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण. सो, सीएमओ को इन विभागों के मंत्री के कार्यालय के रूप में भी काम करना होगा.
खास बातें
> सीएम सचिवालय में 19 महीने में 19 नौकरशाह आए और चलता किए गए.
> अस्थिरता का असर सीएमओ के काम से परे भी है क्योंकि यादव के पास पूरे 11 मंत्रालयों का काम है.