इसमें कई मोड़ आए. अप्रैल की हवा में सतर्कता की नमी थी जब सिद्धरामैया सरकार ने कर्नाटक के 2015 के जाति सर्वेक्षण की रिपोर्ट को धूल झाड़कर बाहर निकाला. मंत्रिमंडल की बैठकों में तनाव था, दबदबा रखने वाली दो जातियों लिंगायत और वोक्कलिगा की तीखी प्रतिक्रिया का डर जो था.
इस बीच केंद्र ने गुगली डाली, जब बरसों की ना-नुकुर के बाद 30 अप्रैल को वह 2026 की जनगणना में जातियों की गिनती के लिए राजी हो गया. इस यू-टर्न का श्रेय कांग्रेस ने लिया मगर जल्द ही उसने भी यू-टर्न ले लिया. कर्नाटक ने 2015 की रिपोर्ट को बहरहाल रद्दी की टोकरी में डाल दिया है.
उसकी जगह अब 22 सितंबर और 7 अक्तूबर के बीच करीब 1,65,000 गणनाकार हाथों में मशीनें लिए बिल्कुल नए वर्गीकरण करने की खातिर राज्य के 7 करोड़ लोगों के बीच फैल जाएंगे.
तो आखिर फिर से क्यों?
नए जाति सर्वे का फरमान क्यों देना पड़ा? 2015 का सर्वे सिद्धरामैया की मनपसंद परियोजना थी मगर रिपोर्ट उनके पद से हटने तक नहीं आ पाई. 2023 में वे फिर सत्ता में लौटे तो उनके लिए यह लाजिमी था कि इसे ठंडे बस्ते से निकालें और इसके डेटा का विश्लेषण करवाएं.
इस विश्लेषण से उपजी 2024 की रिपोर्ट मानो बारूदी सुरंग पर जा गिरी. इसमें लिंगायतों और वोक्कलिगा की आबादी क्रमश: 11.09 फीसद और 10.31 फीसद बताई गई जो अरसे से मानी जा रही 17/12 फीसद से कम है. ऐसे में 2025 के सर्वे को 'अवैज्ञानिक' बताया जाने लगा. मंत्रिमंडल की बहसों से वाकिफ एक कानूनी विशेषज्ञ कहते हैं, ''उनकी दिलचस्पी यथास्थिति बनाए रखने में थी.''
वे बताते हैं, ''मगर एक वैधानिक अड़चन ने रोड़ा डाल दिया.'' रिपोर्ट में पिछड़ों का कोटा 32 फीसद से 51 फीसद करने की मांग की गई. रोड़ा क्या था? सिर्फ यह नहीं कि इससे सुप्रीम कोर्ट की 50 फीसद की ऊपरी सीमा का उल्लंघन होता. 2015 का डेटा 'पुराना पड़ चुका' था.
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में पिछड़े वर्गों में किसी संशोधन के लिए 'समकालीन' आंकड़ों पर जोर दिया गया जो रिपोर्ट ने दो श्रेणियों में किया. वही विशेषज्ञ कहते हैं, ''यही प्राथमिक आधार था जिसने उस पर विराम लगा दिया.''
कई लोग अब ज्यादा समृद्ध आंकड़ों की उम्मीद कर रहे हैं, जो राज्य की सामाजिकी, आर्थिकी और राजनीति की सही तस्वीर पेश करें.
खास बातें
> सितंबर-अक्तूबर 2025 के दौरान कर्नाटक में नया जाति सर्वेक्षण किया जाएगा.
> सिद्धरामैया के पहले कार्यकाल में हुए 2015 के सर्वे पर आधारित 2024 की रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है.
> दबदबे वाली दो जातियों लिंगायत और वोक्कलिगा ने 2015 के डेटा पर सवाल उठाए थे.
- अजय कुमारन