
पाकिस्तान की सरहद से कुछ ही दूरी पर है जैसलमेर जिले का भणियाणा गांव. वर्ष 2020 में तत्कालीन अशोक गहलोत सरकार ने गांव में सरकारी कॉलेज खोलने का ऐलान किया और उसी साल पोस्ट ऑफिस के दो जर्जर-खंडहर कमरों में यह कॉलेज शुरू कर दिया गया.
पहले ही साल में 160 विद्यार्थियों को दाखिला भी मिल गया मगर उन्हें पढ़ाने के लिए न तो पर्याप्त शिक्षकों की व्यवस्था हुई और न ही क्लासरूम की. 2022 में इस कॉलेज का नाम भणियाणा के समाजसेवी खरताराम के नाम पर कर दिया गया मगर संसाधनों की स्थिति जस की तस रही.
फिलहाल, कॉलेज में 350 विद्यार्थी हैं मगर उनके बैठने के लिए 50 टेबल-कुर्सी भी नहीं. न बिजली, पानी और शौचालय है और न ब्लैक बोर्ड. क्लासरूम की हालत ऐसी मानो कॉलेज खुलने के बाद से आजतक उनकी सफाई नहीं हुई. दिन ढलते ही परिसर नशाखोरों से आबाद हो जाता है. पिछले पांच माह में इंडिया टुडे की टीम दो बार इस कॉलेज में पहुंची मगर दोनों दफा कार्यालय और क्लासरूम पर ताला लगा मिला.
यहां से करीब 600 किमी दूर टोंक जिले के दत्तवास कन्या कॉलेज की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है. गहलोत सरकार ने 2022 में जो 117 कॉलेज खोले थे उनमें टोंक जिले का दत्तवास कन्या महाविद्यालय भी एक था. राजधानी जयपुर से महज 60 किलोमीटर दूर इस कॉलेज तक पिछले तीन साल में कोई सुविधा नहीं पहुंच पाई. एक सहायक आचार्य के भरोसे और छोटे-से कमरे में यह डिग्री कॉलेज चल रहा है.
कमरा भी सरकारी स्कूल का है जिसे कॉलेज का नाम दिया गया है. कॉलेज में भवन, शिक्षक और दूसरे संसाधनों की कमी को लेकर पिछले दिनों यहां की छात्राओं ने रास्ता जाम कर दिया था फिर भी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया. इसकी छात्राएं सुमन, अक्षिता और अंकिता भरे मन से कहती हैं, ''प्राइमरी स्कूल के एक कमरे में एक लेक्चरर और एक बाबू के भरोसे हमारा कॉलेज चल रहा है. सौ छात्राओं को एडमीशन दे दिया पर बैठने की व्यवस्था 25 की भी नहीं. न लाइब्रेरी, न पीने का पानी. सरकार अगर बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दे सकती तो फिर कॉलेज खोलती ही क्यों है?''

पूरे राजस्थान में उच्च शिक्षा का यही हाल है. सरकारों ने सियासी फायदे के लिए ग्राम पंचायत स्तर तक सरकारी कॉलेज तो खोल दिए मगर उनको भवन और शैक्षणिक स्टाफ आज तक नहीं मिल पाया है. पिछले छह साल में नए खोले गए 419 कॉलेजों में से 322 में अब तक प्रिंसिपल ही नियुक्त नहीं हैं. इनमें लेक्चरर के 55 फीसद और शारीरिक शिक्षकों के 97 फीसद पद खाली पड़े हैं. राजस्थान कॉलेज एजुकेशन सोसाइटी (राजसेस) के तहत खोले गए 374 कॉलेजों में 90 फीसद में प्रिंसिपल, 97 फीसद में लेक्चरर और 100 फीसद शारीरिक शिक्षकों के पद खाली हैं. गौरतलब है कि पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने अपने कार्यकाल के आखिरी दो साल में 225 सरकारी कॉलेज खोले. 2019 से लेकर 2023 तक उस सरकार ने 303 कॉलेज खोले थे. कॉलेज खोलने में मौजूदा भजनलाल सरकार भी पीछे नहीं है. इस सरकार ने अपने एक साल के कार्यकाल में 74 नए कॉलेज खोल दिए. ये सभी कॉलेज राजसेस के तहत खोले गए हैं.
राजस्थान विश्वविद्यालय और महाविद्यालय शिक्षक संघ (रुक्टा) के प्रदेश महामंत्री प्रो. बनय सिंह कहते हैं, ''सरकार ने उच्च शिक्षा का बंटाढार करने के लिए राजसेस बनाया है. इसके तहत खोले गए सभी कॉलेजों में शिक्षा व्यवस्था और संसाधनों की स्थिति बदहाल है. इन कॉलेजों में जब कोई पढ़ाने वाला ही नहीं तो उच्च शिक्षा में गुणवत्ता कहां से आएगी?''
जर्जर भवन, टूटी कुर्सियां और खाली क्लासरूम इन सरकारी कॉलेजों की पहचान हैं. अधिकांश कॉलेज ऐसे हैं जहां न कोई पढ़ाने वाला है और न कोई पढ़ने वाला. अगर एक दर्जन छात्र एक साथ आ जाएं तो उनकी पढ़ाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. पिछले छह साल में खोले गए इन 419 कॉलेजों में से 367 के पास अब तक खुद का भवन नहीं है. ज्यादातर कॉलेज सरकारी स्कूलों के एक या दो कमरों में चल रहे हैं. 45 कॉलेजों के लिए तो अब तक जमीन का भी आवंटन नहीं हुआ है. सरकार ने नए कॉलेजों के भवन के लिए 2019 से 2025 तक 544 करोड़ रुपए स्वीकृत किए जिसमें से 281 करोड़ रुपए तो खर्च ही नहीं हो पाए.
अधिकांश कॉलेज ऐसे हैं जहां प्रयोगशाला और कंप्यूटर लैब जैसे संसाधनों का नामोनिशान तक नहीं. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के गृह जिले भरतपुर में पिछली सरकार ने 11 नए कॉलेज खोले मगर अभी तक एक भी कॉलेज खुद के भवन में संचालित नहीं है. इनमें दाखिला लेने वाले 3,000 छात्र-छात्राएं सरकारी स्कूलों और किराए के भवनों में पढ़ाई करने को मजबूर हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निर्वाचन क्षेत्र झालावाड़ जिले में 11 कॉलेज हैं, जिनमें से 10 कॉलेज बिना प्रिंसिपल के चल रहे हैं.
अगर कहीं आप यह समझ रहे हों कि ऐसी स्थिति तो दूरदराज के क्षेत्रों में ही है तो आप गलतफहमी में हैं. राजधानी जयपुर में ही नए खोले गए 81 में से 55 कॉलेजों के पास अपने भवन नहीं हैं. आठ कॉलेज तो ऐसे हैं जिनके लिए भूमि का आवंटन भी नहीं हो पाया है. ये सभी कॉलेज सरकारी स्कूलों के कमरों में चल रहे हैं जिसके कारण स्कूलों में भी छात्रों के बैठने की जगह नहीं बची है.
अलवर जिले के राजकीय कन्या महाविद्यालय बर्डोद में कॉलेज और स्कूल के बच्चे एक साथ पढ़ाई करते हैं. 2022 में जब इस कॉलेज को खोलने का ऐलान हुआ तो गांव में ऐसा कोई भवन न था जहां इसे चलाया जा सके. ऐसे में सरकारी स्कूल के दो कमरों में यह कॉलेज खोल दिया गया. पिछले तीन साल से यह कॉलेज बिना भवन और बिना शैक्षणिक स्टाफ के चल रहा है.
कॉलेजों में संसाधनों की कमी पर राजस्थान के उच्च शिक्षा मंत्री और उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा कहते हैं, ''पिछली सरकार ने बिना किसी ठोस आधार के राजनैतिक फायदे के लिए कॉलेज खोल दिए. इनमें न शिक्षक हैं, न छात्र और न ही संसाधन. हम इन कॉलेजों की समीक्षा कर रहे हैं.''
सरकार के इस फैसले पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पलटवार करते हैं. गहलोत ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, ''सरकार का काम स्कूल और कॉलेज खोलकर विद्यार्थियों को उनके घर के पास ही शिक्षा उपलब्ध करवाना है. हमारी सरकार ने 303 कॉलेज खोले परंतु राजस्थान की भाजपा सरकार समीक्षा के नाम पर पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के खोले गए कॉलेजों को बंद करने जा रही है.''

जानकार राजस्थान में उच्च शिक्षा की इस बदहाली का कारण बिना किसी योजना के सियासी आधार पर धड़ाधड़ कॉलेज खोलने को मानते हैं. शिक्षाविद् डॉ. प्रकाश चतुर्वेदी कहते हैं, ''राजस्थान में आजादी के बाद से जितने कॉलेज नहीं खुले, उससे कहीं ज्यादा 2019 से 2023 के बीच खोल दिए गए. 1836 से 2018 तक राजस्थान में महज 211 सरकारी कॉलेज खोले गए, वहीं 2019 से 2023 के बीच पांच साल में ही 343 नए कॉलेज खोल दिए गए.''
शिक्षाविद् अजय पुरोहित के अनुसार, ''अंग्रेजी राज में भी राजस्थान में उच्च शिक्षा का इतना बुरा हाल नहीं था जितना आज है. समृद्ध साहित्य, संस्कृति और इतिहास राजस्थान की विरासत रही है. आजादी से पहले ही राजस्थान उत्तर भारत में शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है. ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1836 में राजस्थान के अजमेर में पहला गवर्नमेंट कॉलेज खोला था जो सम्राट पृथ्वीराज चौहान गवर्नमेंट कॉलेज के नाम से जाना जाता है. उस समय पूरे उत्तर भारत का यह एकमात्र कॉलेज था जहां अंग्रेजी शिक्षा दी जाती थी.
अजमेर में ही 1875 में लॉर्ड मेयो ने मेयो कॉलेज खोला जो आधुनिक शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा. आजादी से कई साल पहले 1866 में जयपुर में स्कूल ऑफ आर्ट्स खोला गया. महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय ने 1857 में 'मदरसा ए हुनरी' के नाम से यह कॉलेज खोला था. 1866 में इस कॉलेज का नाम महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स ऐंड क्राफ्ट कर दिया गया.''
जाहिर है, राजस्थान की मौजूदा उच्च शिक्षा के इंतजाम अपने अतीत से बिल्कुल मेल नहीं खाते. जब तक कॉलेजों की व्यवस्था नहीं सुधरती, छात्रों की पढ़ाई के पर्याप्त इंतजाम नहीं होते, तरक्की के दौर में राजस्थान ऊंचा स्थान हासिल नहीं कर सकेगा.