पश्चिम बंगाल भाजपा में लंबे समय से योग्यता और महत्वाकांक्षा के बीच एक अजीब-सा फासला रहा है. और यह तब है जब पार्टी ने वर्षों में अच्छी-खासी राजनैतिक जगह बनाई है. उसकी समस्या यह है कि इस क्षेत्र में काम करने वाला संगठन भीतर से जीर्ण-शीर्ण है. 2022 के मध्य से बंगाल के लिए पार्टी के प्रभारी सुनील बंसल का लक्ष्य 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले इसमें बदलाव लाना है.
उनकी सूत्र हैं- वैचारिक प्रतिबद्धता, जमीनी स्तर पर जुड़ाव, वफादारी और व्यवस्थित योजना, जो संघ परिवार में किसी भी तरह की योजना के क्रियान्वयन के लिए सामान्य बात है. लेकिन यह बदलाव रणनीतिक रूप से कितना अगल है, इसे परखने के लिए आप बंसल के पूर्ववर्ती कैलाश विजयवर्गीय की अराजकता वाली विरासत से तुलना भर कीजिए.
उनका वह एक विवादास्पद दौर था. उन्होंने बड़े पैमाने पर दलबदलुओं को जोड़ लिया था. शुरुआत में दूसरे तरीकों से लोगों को जोड़ना जरूरी हो जाता है लेकिन इससे जल्द ही ऐसी स्थिति हो गई जहां अस्थिरता किसी तरह के रोग की बजाय शरीर ही हो गई.
ऐसे घटाटोप में कैसे आगे बढ़ा जाए? बंसल के पास अपना मार्गदर्शक था. उन्होंने हाल ही भाजपा के साल्ट लेक कार्यालय में जुटे जिला स्तरीय नेताओं से कहा कि हरेक विधानसभा क्षेत्र में दो या तीन नेताओं की पहचान करें. पैमाना: उन्हें भाजपा के साथ रहना होगा, भले भाजपा सत्ता में रहे या नहीं. उन्होंने कहा कि जिनके स्वभाव में भी दलबदल की संभावना न हो, ऐसे वफादारों को सबसे आगे लाना जरूरी है.
इसी से 2026 के लिए उम्मीदवारों का पूल बनेगा. बैठक में मौजूद पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के शब्दों में, ''उन्होंने यह साफ-साफ तो नहीं कहा मगर संदेश स्पष्ट था. बाहर से उम्मीदवार आयात के दिन गए. बड़ा नाम होना मायने नहीं रखेगा.'' केवल अच्छे लोग.
2021 के चुनाव में पार्टी ने बड़े और नामी, खासकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के दलबदलुओं पर भरोसा किया. उसे इसका फायदा तुरंत मिला: 2016 में तीन सीटों से भाजपा ने 77 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी दल की हैसियत हासिल कर ली. लेकिन हड़बड़ी में खड़ी की गई तामीर को हिलने में देर भी नहीं लगी. कई जीते लोग फिर से टीएमसी में पहुंच गए जिससे विधानसभा में भाजपा की प्रभावी ताकत घटकर इस समय 65 रह गई.
बाहरी नेताओं का झुंड
पुराने कार्यकर्ता संगठन का सामंजस्य और मतदाताओं का विश्वास टूटने के लिए विजयवर्गीय के फटाफट कामयाबी हासिल करने के जुनून को जिम्मेदार ठहराते हैं. कुछ लोग कई हारे उम्मीदवारों का हवाला देते हैं और कहते हैं कि विजयवर्गीय के नजरिए ने वास्तव में ज्यादा संख्या में जीत की संभावनाओं को नाकाम कर दिया. यहां तक कि उनके खास भरोसेमंद और टीएमसी से आए मुकुल रॉय 2021 की हार के कुछ दिनों के भीतर ही पुरानी पार्टी में लौट गए.
किसी भी पैमाने पर देखें तो विजयवर्गीय कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के बीच खासे अलोकप्रिय हो गए—उन पर टीएमसी के साथ मिलीभगत करके काम करने, लंबे समय से जुड़े रहे भाजपा कार्यकर्ताओं को अपमानित और दरकिनार करने का आरोप लगाया गया. यहां तक कि जाहिरा तौर पर आरएसएस की अवहेलना की. उनके निष्कासन की मांग करने वाले पोस्टर पूरे कोलकाता में लग गए, जिससे उन्हें कुछ समय के लिए मुख्य गतिविधियों से बाहर होना पड़ा. नतीजों के दो महीने बाद वे फिर—एक ऑनलाइन बैठक में—दिखाई दिए और उनको नाराज कार्यकर्ताओं का गुस्सा झेलना पड़ा.
बंसल ने इस मोर्चे पर भी बदलाव किया. एक सूत्र के मुताबिक, ''उनमें कुछ खास बात है. वे ऐसे शख्स दिखते हैं जिनके पास योजना है. हर कोई उनकी बात सुनता है.'' वे सीमाएं निर्धारित तय करते हुए बहुत-सी बातें कह रहे हैं. जिला इकाइयों को स्पष्ट, जवाबदेह, प्रतिनिधि स्तरों के साथ फिर से तैयार किया गया है. एक नया नियम पार्टी के काम और चुनाव के बीच स्पष्ट विभाजन है. उन्होंने जिलों के पार्टी प्रमुखों पर 2026 का चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है. हरेक जिले में एक निगरानी समिति होगी और इसके सदस्य भी चुनाव नहीं लड़ेंगे.
मई के मध्य में बूथों तक पहुंचने की कवायद शुरू होगी. उसके बाद रैलियां होंगी. सटीक गुणा-भाग के साथ सत्ता शिखर की तैयारी है. सुनील बंसल के पास पक्का हिसाब-किताब है.
खास बातें
> कैलाश विजयवर्गीय के समय में भाजपा कार्यकर्ताओं की अनदेखी करके बाहरी लोगों को पार्टी में शामिल कर लिया गया था.
> बंसल की संगठनात्मक सफाई में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की बजाए पार्टी को प्राथमिकता दी गई है.
> जिला इकाइयां वफादार जमीनी कार्यकर्ताओं की पहचान करेंगी, जो 2026 के लिए उम्मीदवारों के मुख्य समूह का हिस्सा बनेंगे.
- अर्कमय दत्ता मजूमदार

