
अरवल जिले के शादीपुर गांव में अवधेश यादव के दरवाजे पर सिर पर हाथ धरे बैठी पूनम देवी कहती हैं, ''सारा लछमी तो बाधे (खेत) में है. किसान का सब चीज तो ओन्हे (वहीं) न है, सबूर (सब्र) नहीं हुआ, सोचे काट कर घरे ले आएंगे. चले गए. कौन जानता था, काल घेर लेगा!’’ वे चार रोज पहले अवधेश के परिवार के साथ हुए हादसे का जिक्र कर रही थीं.
आसमान में बादल उमड़ते देख अवधेश को फिक्र हुई कि उनकी चने की खड़ी फसल कहीं तबाह न हो जाए. वे पत्नी और बिटिया के साथ भागे-भागे खेतों की तरफ गए. वहां उन्होंने चने की फसल को काटना शुरू ही किया था कि तेज आंधी के साथ बारिश शुरू हो गई. छिपने की कोई जगह न थी तो तीनों खेतों में पड़े पुआल के बीच में ही घुस गए. मगर तभी बिजली कड़की और उसी पुआल पर आ गिरी.
दूर कहीं अपने गेहूं के बोझे को बांध रहे अमरेंद्र भी उन्हीं की तरह खेतों में रखे पुआल में छिपे थे. बारिश कम हुई, सिर निकाला तो देखा कि गिरती बूंदों के बावजूद अवधेश के खेत में ज्वाला धधक रही है. वे भागे-भागे गए तो पाया कि तीनों जलकर राख हो चुके थे.
बस्ती से लगभग दो किमी दूर, एक स्थानीय नदी के पार खेतों में उस वक्त भी दर्जनों किसान मौजूद थे. कोई गेहूं के बोझे समेटने गया था, तो कोई चना बटोरने. अमरेंद्र कहते हैं, ''हमारे मोबाइल पर सरकारी मैसेज आया था कि आंधी-तूफान और वज्रपात का अंदेशा है. मगर क्या करते. साल भर की मेहनत कैसे बर्बाद होने देते. भागे-भागे खेत गए. तभी यह घटना घट गई. हमारे साथ भी हो सकती थी.’’
शादीपुर गांव के इन किसानों की तरह बिहार के दूसरे इलाकों में भी इस अप्रैल में आंधी के अंदेशे और वज्रपात की चेतावनी के बावजूद लोग खेतों की तरफ गए और कई जगह ऐसी घटनाएं हुईं. अप्रैल के दूसरे हफ्ते में वज्रपात से मरने वालों का सरकारी आंकड़ा 23 और गैर सरकारी आंकड़ा 61 पहुंच गया. इनमें ज्यादातर किसान, खेतिहर मजदूर और पशुपालक थे.

बिहार में वज्रपात से हर साल 250-400 लोगों की जान जाती है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019-2024 के बीच यानी छह वर्षों में इससे 1,937 लोगों की मौत हो चुकी है (देखें बॉक्स). एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2024 के मुताबिक, 2014 से 2024 के बीच बिहार में बिजली गिरने से 2,937 लोग मारे गए. मृतकों की संक्चया के मामले में बिहार देश में मध्य प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है. मरने वालों की संख्या के लिहाज से खुद बिहार में वज्रपात सभी प्राकृतिक आपदाओं में दूसरे नंबर पर है. सर्वाधिक मौत डूबने से होती हैं.
बिहार में ऐसी घटनाएं ज्यादातर दक्षिण बिहार के इलाके में हो रही हैं. 2024 में मरने वालों में 72 फीसद इन्हीं इलाकों के थे. सर्वाधिक मौतें गया, औरंगाबाद, रोहतास, बांका और जमुई जिले में होती हैं. मरने वालों में बड़ी संख्या आदिवासी समुदाय के लोगों की है. इसके ज्यादातर हादसे अप्रैल से सितंबर महीने के बीच दोपहर 12.30 से शाम छह बजे तक होते हैं (देखें बॉक्स).
मौसम वैज्ञानिक मानते हैं कि पिछले एक से डेढ़ दशक में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं. गया की सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर प्रधान पार्थसारथी कहते हैं, ''हाल के वर्षों में गंगा के मैदानी भाग में बारिश के पैटर्न में बड़ा बदलाव आया है. अब लार्ज स्केल क्लाउड यानी हफ्तों तक रिमझिम बरसने वाले बादलों की जगह कन्वेक्टिव क्लाउड यानी आंधी-पानी के साथ घंटे-दो घंटे में बरस जाने वाले बादल ज्यादा बन रहे हैं.
ऐसे बादलों से ही वज्रपात और ओलावृष्टि का ज्यादा खतरा रहता है.’’ उनकी मानें तो बिहार में हाल के दशकों में होने वाले अनियोजित निर्माणकार्य ने भी इस तरह के बादलों को बढ़ावा दिया है. ''इस तरह के निर्माण की वजह से कई शहरी इलाके काफी गर्म हो जाते हैं और उनके पड़ोस का इलाका अपेक्षाकृत ठंडा रह जाता है. इसी वजह से कन्वेक्टिव क्लाउड ज्यादा बनते हैं.’’
इन मामलों को देखते हुए बिहार सरकार ने वज्रपात से बचाव को अपनी प्राथमिकता की सूची में रखा है. राज्य का आपदा प्रबंधन विभाग और आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, मौसम विभाग के साथ मिलकर इससे बचाव के लिए अलग-अलग उपाय अपना रहे हैं और जन-जागरूकता के लिए भी अभियान चला रहे हैं. पहले सरकार को लगता था, वज्रपात की समय पूर्व चेतावनी न मिल पाने से इतनी मौतें होती हैं.
सो, सरकार ने मौसम विभाग के साथ मिलकर इसकी चेतावनी पहुंचाने को एक ऐप विकसित किया, नाम रखा गया इंद्रवज्र. दावा किया गया कि इस पर वज्रपात से आधे घंटे पहले चेतावनी जारी की जाएगी. कई वजहों से यह ऐप कारगर न हुआ. एक तो यह बहुत स्लो था, दूसरा वज्रपात से मरने वाले ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं, जो स्मार्टफोन नहीं रखते.
इसके बाद सरकार ने नीति बदली. अब एसएमएस के जरिए आंधी, पानी और वज्रपात की चेतावनी भेजी जाती है, जो लोगों को मिलती भी है. शादीपुर गांव के लोगों ने भी इसकी पुष्टि की. आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने तीसरा तरीका निकाला हूटर का. उसके जरिए वे गांव भर को चेतावनी देंगे कि उनके इलाके में वज्रपात होने वाला है. इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दक्षिण बिहार के गया, नवादा और औरंगाबाद जिले को चुना गया, जहां वज्रपात की घटनाएं सर्वाधिक होती हैं. नवादा में तो यह प्रोजेक्ट शुरू न हो सका मगर गया और औरगांबाद जिले में 50 से ज्यादा गांवों में हूटर लगे.
ऐसा ही एक हूटर गया जिले के केसपा गांव में पंचायत भवन पर लगा है, जिसे चलाने की जिम्मेदारी वहां के वार्ड सदस्य विमलकांत शर्मा की है. वहां पहुंचने पर पंचायत भवन बंद पड़ा था, मुखिया सपरिवार एक शादी में गए थे. आसपास के लोगों ने बताया कि साल भर पहले तक हूटर बजता था पर उसके बाद से बंद है. शर्मा ने बताया, ''पहले मेरे पास फोन और मैसेज आता था, तो हम हूटर बजा देते थे.
मैसेज अब भी आता है. हूटर लगाते वक्त वादा किया गया था कि इसे बजाने के एवज में 4,000 रु. महीने मिलेंगे मगर अब तक एक पैसा न मिला.’’ उनका साफ इशारा था कि पैसे न मिलने के कारण उन्होंने यह काम करना छोड़ दिया है. हूटर बजाने के लिए पैसे दिए जाने की बात से इनकार करते हुए प्राधिकरण का कहना था कि इसके संचालन की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होती है, उसने वादा किया हो तो कह नहीं सकते. लेकिन हूटर बहुत फायदेमंद साबित नहीं हुआ क्योंकि यह बस्ती में लगा होता है और इसकी आवाज अमूमन खेतों तक नहीं पहुंचती.
अब प्राधिकरण ने अपना सारा फोकस ताबीज की शक्ल वाला वह उपकरण तैयार करने पर लगा रखा है, जो वज्रपात की स्थिति में लोगों को पूर्व चेतावनी देगा. इसे गले में लटका सकते हैं. यह आवाज भी करेगा और वाइब्रेट भी. चेतावनी देते वक्त इसका रंग भी बदलेगा. यह बाढ़, लू और शीतलहर जैसी आपदाओं की भी चेतावनी देगा. यह शरीर के ताप से चार्ज होगा.
इसे आइआइटी, पटना ने तैयार किया है और प्राधिकरण ने नाम रखा है नीतीश. पर अभी इसका मास प्रोडक्शन नहीं हो रहा. प्राधिकरण के मुताबिक, ''हमें कम से कम 50,000 ऐसे पेंडेंट अभी चाहिए. आइआइटी, पटना के पास ऐसा करने के लिए न कोई व्यवस्था है, न उसके वेंडर हमारी अपेक्षा के हिसाब से ताबीज तैयार कर पा रहे.’’
ऐसे में प्राधिकरण अब एक निजी एजेंसी को इसका जिम्मा सौंपने जा रहा है. प्राधिकरण इसरो के साथ मिलकर वज्रपात को कैप्चर करने वाली मशीन तैयार करने की योजना बना रहा है. यह वज्रपात को अपनी ओर आकर्षित करके जमीन पर गिरने से रोकेगी.
प्राधिकरण खेतों में ताड़ के पेड़ लगवाने पर भी विचार कर रहा है क्योंकि ताड़ के पेड़ बिजली को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं. शादीपुर गांव में किसानों ने ताड़ के कई ऐसे पेड़ दिखाए, जिन पर बिजली गिरी थी.
इस विषय पर अध्ययन कर रहे नेशनल स्कूल ऑफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग, कोलकाता के प्रोफेसर अनिल कुमार बिहार को तीन तरह के सुझाव देते हैं. पहला, बिहार को इसमें ओडिशा से सीख लेनी चाहिए जिसने अलर्ट सिस्टम को पंचायतों से जोड़ दिया है.
इससे वह खासा प्रभावी हो गया है; दूसरा, चूंकि अलर्ट के बावजूद आर्थिक वजहों से किसान खेतों में जाने का खतरा उठा लेते हैं, इसलिए खेतों में कम कीमत के शेड बनाकर और उस पर तड़ित चालक लगाकर उसे और सुरक्षित किया जा सकता है; तीसरा सुझाव 20-20 का है जो ओडिशा में सफल रहा है. बिजली चमकने और वज्रपात होने के बीच 20 सेकंड का समय रहता है. लोगों को बिजली चमकने पर तुरंत सुरक्षित ठिकाना ढूंढने को कहा जा सकता है और फिर अगले बीस मिनट तक वे वहीं रहें.
बिहार में बिजली गिरने की घटनाओं की संख्या कम है पर मौतों की संख्या ज्यादा. एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट, 2024 के मुताबिक, प्रति वर्ग किमी में होने वाले वज्रपात की संख्या के मामले में बिहार देश में 24वें स्थान पर है. यानी कम वज्रपात के बावजूद बिहार में मौतें ज्यादा हैं. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में वज्रपात के ज्यादा होने के बावजूद मौतें कम हो रही हैं.
प्राधिकरण भी मानता है कि चेतावनी के बावजूद आर्थिक वजहों से लोग खेतों में जाने को मजबूर हैं. शादीपुर के किसान अमरेंद्र कहते हैं, ''खेतों में फसल रहेगी तो आप लाख चाहकर भी किसानों को रोक नहीं पाएंगे. सबसे अच्छा तरीका खेतों में शेड बनवाना हो सकता है, जहां बारिश होने पर किसान आसरा ले सकें.’’ उपाय तो ठीक है मगर इसके लिए किसानों की जमीन चाहिए होगी. क्या मिल सकेगी?
नाकाम होते उपाय
●इंद्रवज्र ऐप: सरकार ने ऐप बनाकर लोगों को चेतावनी देने की कोशिश की. मगर एक तो ऐप स्लो था, दूसरा मरने वाले इतने संपन्न नहीं कि वे स्मार्टफोन रख सकें.
●हूटर बजाना: गांव में चेतावनी देने के लिए हूटर रखे गए मगर हूटर बस्ती में लगा होता और चेतावनी देने की जरूरत खेतों में थी.
●एसएमएस अलर्ट: सरकार दो से तीन घंटे पहले एसएमएस अलर्ट भेजती है कि आपके इलाके में वज्रपात का अंदेशा है. मगर फसल को बचाने के चक्कर में किसान चेतावनी की अनदेखी कर देते हैं.
●नीतीश पेंडेंट: गले में लटका यह ताबीज किसानों को अलर्ट करेगा मगर अभी इसका मास प्रोडक्शन नहीं हो पा रहा.

