scorecardresearch

आंध्र प्रदेश: क्या गरीबी का रामबाण इलाज है चंद्रबाबू नायडू का 'जीरो पावर्टी-पी4' प्लान?

एन. चंद्रबाबू नायडू ने पी-4 पहल को गेम-चेंजर बताया, लेकिन आलोचक इसे सरकार के जिम्मेदारी से भागने के रूप में देखते हैं

चंद्रबाबू नायडू   (Photo: ANI)
चंद्रबाबू नायडू (Photo: ANI)
अपडेटेड 22 मई , 2025

तेलुगु नववर्ष उगादी किसी नई शुरुआत के लिए शुभ समय माना जाता है. और, यही वह दिन है जब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने अपने स्वर्ण आंध्र 2047 विजन के हिस्से के तौर पर एक महत्वाकांक्षी योजना पेश करने का फैसला किया, जिसको लेकर उनका दावा है कि यह गरीबी उन्मूलन की परिभाषा बदल सकती है.

दरअसल, 30 मार्च को शुरू की गई जीरो पावर्टी-पी4 पहल समावेशी विकास की एक साहसी पहल है, जिसमें सबसे समृद्ध 10 फीसद आबादी को नीचे के 20 फीसद का सहयोग करने के लिए सूचीबद्ध किया गया है. इसका लक्ष्य बहुत बड़ा है: आंध्र प्रदेश को 2029 तक गरीबी-मुक्त करना.

पी4- यानी पब्लिक-प्राइवेट-पीपल पार्टनरशिप के केंद्र में एक योजनाबद्ध मार्गदर्शन कार्यक्रम है. 'मार्गदर्शी' (मार्गदर्शक) कहे जाने वाले संपन्न व्यक्तियों को 'बंगारू कुटुंबों' (स्वर्ण परिवार) के रूप में नामित गरीब परिवारों को 'गोद लेने' के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. सरकार की ओर से संचालित ये साझेदारियां वित्तीय सहायता से आगे जाती हैं.

उम्मीद की जा रही है कि राज्य के उच्च-नेट-वर्थ वाले व्यक्ति और तेलुगु प्रवासी मार्गदर्शक बनेंगे और करियर संबंधी मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं, वित्तीय फैसलों में मदद कर सकते हैं, पेशेवर नेटवर्क तक पहुंच मुहैया कर सकते हैं या यहां तक कि ट्यूशन फीस या कार्यशील पूंजी में योगदान कर सकते हैं.

जिनके पास समय की कमी हो, वे व्यक्ति, परिवार या गांव स्तर पर लाभार्थियों की शिक्षा, स्वास्थ्य या बुनियादी ढांचे के लिए धन देकर मदद कर सकते हैं. नायडू कहते हैं, ''अब तक, दान के प्रयास व्यक्तिगत (रूप से प्रेरित) रहे हैं, जबकि सरकार ने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) पेश किया. मगर, यह पहल अनूठी है क्योंकि यह मार्गदर्शियों बंगारू कुटुंबों के बीच सीधी भागीदारी के लिए संस्थागत मंच प्रदान करती है.''

पहला चरण शुरू हो चुका है. दो बंगारू कुटुंबों को तीन प्रमुख मार्गदर्शियों मेघा इंजीनियरिंग ऐंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एमईआइएल) के प्रबंध निदेशक पी.वी. कृष्णा रेड्डी, ग्रीनको के सीईओ अनिल कुमार चलामलाशेट्टी और उद्यमी सज्जन कुमार गोयनका से परिचित कराया गया. उन परिवारों ने अपने संघर्षों को बयान किया, खासकर अपने बच्चों की शिक्षा के पैसे जुटाने में अपनी असमर्थता के बारे में. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कृष्णा रेड्डी ने कहा कि उन्होंने पहले ही कृष्णा जिले में एक मंडल का सर्वेक्षण किया है और इसे पूरी तरह गोद लेने के लिए तैयार हैं.

यह तो बस शुरुआत है. सरकार ने इस कार्यक्रम में शामिल करने के लिए राज्य के सबसे गरीब 20 लाख लोगों की पहचान की है तथा आगे और भी ज्यादा परिवार इसमें जोड़े जाएंगे. इसका निकटतम लक्ष्य उनमें से 5,00,000 परिवारों को 'गोद लेने' का काम 15 अगस्त तक पूरा कराना है. सरकार इस पहल को योजनाबद्ध करेगी और डिजिटल डैशबोर्ड के जरिए पारदर्शिता सुनिश्चित करेगी, मगर उसने वित्तीय लेनदेन से खुद को अलग रखा है. मार्गदर्शियों को यह चयन करने की स्वतंत्रता होगी कि वे किन परिवारों को मदद करना चाहते हैं और जब दोनों पक्ष सहज हो जाएंगे तो सरकारी कर्मचारी उनकी सहभागिता को सुगम बनाएंगे.

इस पहल को परिवर्तनकारी मॉडल बताया जा रहा है, जो भारत में गरीबी उन्मूलन को नए सिरे से गढ़ सकता है. दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए राज्य मूलभूत सुविधाएं प्रदान करने में सुधार पर भी काम कर रहा है. इनमें घर के लिए जगह, स्वच्छता, एलपीजी कनेक्शन, भरोसेमंद बिजली, हाइ-स्पीड इंटरनेट और यहां तक कि उद्यमिता के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना शामिल है. पी4 सोसाइटी के अध्यक्ष नायडू और उपाध्यक्ष उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण हैं और इसे राज्यव्यापी क्रियान्वयन की निगरानी के लिए स्थापित किया जा रहा है.

इसमें जिला, विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र और ग्राम सचिवालय स्तर के भाग होंगे. इनमें उद्योग के अगुओं, दानदाताओं, सीएसआर प्रमुखों और सिविल सोसाइटी संगठनों को भी शामिल किया जाएगा. नायडू की उम्मीदें काफी ज्यादा हैं. वे जोर देकर कहते हैं, ''अब तक, मेरी कोई भी योजना विफल नहीं हुई है. अगले उगादी तक, हम प्रगति का मूल्यांकन करेंगे और 2029 तक मार्गदर्शियों को एक योजनाबद्ध और बढ़ाए जा सकने वाले मॉडल के जरिऐ सभी बंगारू कुटुंबों को गरीबी से बाहर निकालने का प्रयास करना चाहिए.'' 

इस पहल ने बहस को भी जन्म दिया है. नायडू पी4 को 'गेम-चेंजर' के तौर पर पेश कर रहे हैं, मगर आलोचक इसे राज्य को अपनी जिम्मेदारी से भागने के रूप में देखते हैं. विपक्षी युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाइएसआरसीपी) ने इसे खारिज करते इसे नायडू के निजीकरण समर्थक रुख का विस्तार बताया है.

वाइएसआरसीपी नेता ए. रामबाबू कहते हैं, ''नायडू का पी4 पहल जिम्मेदारी से बचने और 'सुपर सिक्स' चुनावी वादों को पूरा करने में उनकी अक्षमता को छिपाने का प्रयास है. जिस शख्स ने धन सृजन का दावा किया था, अब गरीबी उन्मूलन की जिम्मेदारी धनवानों को सौंप रहा है और इससे उसकी चालबाज सियासत उजागर होती है.''

कई अन्य लोगों को इस योजना में उम्मीद नजर आ रही है, मगर वे इसकी चुनौतियों को लेकर आगाह भी करते हैं. तिरुपति में श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञानी बी.वी. मुरलीधर कहते हैं, ''नायडू ने एक विजनरी की तरह बड़ी उम्मीदें लगा रखी हैं. मगर गरीबी को खत्म करने की बात कहना आसान है, उसे पूरा करना आसान नहीं. राजनैतिक दलों के विविध दृष्टिकोण को देखते हुए इसे इस मकसद को हासिल करना आसान नहीं है.''

पी4 का आकार और महत्वाकांक्षा अद्वितीय हैं, मगर यह कामयाब होगा या नहीं, यह निजी क्षेत्र और सिविल सोसाइटी की निरंतर भागीदारी पर निर्भर करेगा. अगर यह सफल होता है तो जैसा कि नायडू कहते हैं, यह तेलुगु लोगों को ''दान के क्षेत्र में वैश्विक आदर्श'' के रूप में प्रतिष्ठित कर सकता है. अगर नहीं तो इसके एक और अच्छी मंशा वाली अव्यावहारिक नीति बन जाने का अंदेशा है जो राजनैतिक और आर्थिक हकीकत की जटिलताओं में खो जाएगी.

नायडू ने पी4 पहल को गेम-चेंजर बताया लेकिन आलोचक इसे सरकार के जिम्मेदारी से भागने के रूप में देखते हैं

पी4 योजना

> नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, आंध्र प्रदेश में बहुआयामी गरीबी दर 6.06 फीसद (2019-2021) है. राष्ट्रीय औसत 19.96 फीसद है.

> आंध्र का बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआइ) 0.053 (2015-16) से घटकर 0.025 हो गया. इसकी वजह से यह भारत का नौवां सबसे कम गरीब राज्य बन गया. 

> पब्लिक-प्राइवेट-पीपल पार्टनरशिप (पी4) पहल का लक्ष्य सबसे धनी 10 फीसद लोगों को सबसे गरीब 20 फीसद लोगों के साथ जोड़कर राज्य को 2029 तक गरीबी मुक्त करना है.

> संपन्न व्यक्ति (मार्गदर्शक) केवल महज आर्थिक सहायता से ऊपर उठकर गरीब परिवारों (बंगारू कुटुंबम) को मार्गदर्शन और सहयोग प्रदान करेंगे.

> सरकार इन भागीदारियों को सहज बनाने के साथ डिजिटल डैशबोर्ड और निगरानी के जरिए पारदर्शी बनाएगी.

 

Advertisement
Advertisement