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"2005 में मुझे 8 इंटरनेशनल मैच खेलने के सिर्फ 8 हजार मिले थे"

क्रिकेट में महिलाओं के हिस्से आई गैर-बराबरी के बावजूद देश के लिए मैदान पर बराबर डटी रहीं भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज ने अपने जुनून, रेलवे की नौकरी और रिश्तों पर बेबाक राय रखीं.

Q+A
मिताली राज.
अपडेटेड 1 सितंबर , 2025

सवाल  जवाब

● क्रिकेट में गैर-बराबरी का अनुभव रहा?

जब महिला टीम 'वीमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ के अंडर थी तब संसाधनों की भारी कमी थी. उस समय हमारा सालाना कॉन्ट्रैक्ट तक नहीं होता था. मैच फीस तक नहीं मिलती थी. हम 2005 में वर्ल्ड कप रनर-अप बनकर लौटे तो हमें आठ मैच खेलने के लिए आठ हजार रुपए दिए गए थे.

इस संसाधनहीनता का असर खिलाड़ियों के आपसी संबंधों पर भी पड़ता था?

नहीं. बल्कि इसका एक फायदा होता था कि एक कमरे में दो खिलाड़ी रहते थे. कभी परफॉर्म न कर पाओ तो बात करने के लिए कोई होता था. टीम में लगभग दस लोग रेलवे से थे. मैं भी रेलवे से थी.

रेलवे में नौकरी करते हुए खेलने का अनुभव कैसा रहा?

2001 में जब मैं 18 साल की थी तब मैंने सीनियर क्लर्क के तौर पर ज्वाइन किया था. काम ज्यादातर लिखत-पढ़त का था. मेरे साथ काम करने वाले लोग बहुत अच्छे और काफी मददगार थे. डब्ल्यूपीएल (वीमन्स प्रीमियर लीग) के आने के बाद महिला क्रिकेट में पैसा आया है. पहले ऐसा नहीं था. इंडियन रेलवे ने लंबे समय तक महिला क्रिकेटरों को नौकरियां दीं.

बीसीसीआइ के टेकओवर करने के बाद हालात कितने बदले हैं?

काफी चीजें बदली हैं. घरेलू क्रिकेट में हम स्कूल ग्राउंड और क्लब ग्राउंड में खेलते थे. बीसीसीआइ के आने से हमें इंटरनेशनल स्टेडियम में खेलने का मौका मिला. फ्लाइट्स में ट्रैवल, डेली अलाउंस मिलने लगे. पहले क्लास रूम में रहना पड़ता था. अब होटल मिलने लगे हैं. अब फीजियो और ट्रेनर भी मिलने लगे हैं.

ग्राउंड पर स्लेजिंग (छींटाकशी) के क्या अनुभव रहे हैं?

हमारे टाइम गाली नहीं होती थी. कमेंट होते थे बस. ग्राउंड पर गालियां होनी भी नहीं चाहिए. मेरा मानना है कि मैं इज्जत से बात कर रही हूं, तो मुझसे भी इज्जत से ही बात करो.

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