सवाल: शीर्षक उपन्यासिका द हश ऑफ द अनकेयरिंग सी एक बंगाली साधारण मानुष के बारे में है जो नियति के थपेड़ों को झेलते हुए समुद्र में जा घिरता है. इस कहानी की बुनियाद बताइए जरा.
जवाब: मेरे भाई बीताशोक ने सी कैप्टन के रूप में 30 साल से ज्यादा समंदर में बिताए हैं. रिटायर होने के बाद से वे समुद्री कहानियां लिख रहे हैं जिनमें मुझे मजा आ रहा है. नायक अबनी की दास्तान उन्हीं की एक कहानी के दो पैराग्राफ से निकलकर आई.
सवाल: 'द रिवेंज ऑफ द नॉन-वेजिटेरियन 2018' में लिखी गई थी लेकिन बेहद मौजूं लगती है...
जवाब: हां, यह बात तो सही है. पर इसे लिखते वक्त मैं किसी तरह के राजनैतिक पहलू को रेखांकित करने की कोशिश बिल्कुल नहीं कर रहा था. शाकाहार-मांसाहार जैसी खानपान की आदतों को लेकर इस धरती पर शुरू से ही टकराव चलता आया है. इस फ्रेमवर्क को मैं अपने कैरेक्टर अगस्त्य सेन के पिता मधुसूदन सेन का किस्सा बयान करने के लिए एक फ्रेमवर्क के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता था. मधुसूदन भी एक आइएएस अफसर है.
सवाल: अतीत के नस्लवाद के बारे में लिखना और मॉडर्न नजरिए को उसमें दिखने न देना कितना कठिन है? जैसा कि आपकी आखिरी उपन्यासिका द हैपलेस प्रिंस में आपने इसे इस्तेमाल किया है.
जवाब: द हैपलेस प्रिंस आंशिक तौर पर बिली बंटर की स्कूली बच्चे की कहानियों से प्रेरित है. उनमें एक भारतीय किरदार था और बहुत सारा नस्लवाद भी, पर हम सब उन्हें पढ़ते थे. मैं बिली बंटर जैसी ही एक कहानी लिखना चाहता था, सही मायनों में एक भरे-पूरे किरदार को लेकर, जो कि घिसे-पिटे अंदाज वाला न हो.
सवाल: नॉवेला यानी उपन्यासिका के स्वरूप के बारे में सोचने पर किसी लेखक का नाम जेहन में उभरता है क्या?
जवाब: नहीं ऐसा कोई खास नहीं है, कहानियां और कथानक मेरे लिए खास होती है. हालांकि हेनरी जेम्स और लियो तोल्स्तॉय ने अपने समय में कुछ बड़ी ही कमाल की उपन्यासिकाएं लिखीं. मेरे लिए तो कथानक और खुद कहानी ही तय करती है कि किसी रचना की लंबाई क्या होगी. इसे लिखने के दौरान सही लय और सही शब्द-वाक्य विस्तार खुद ही इस बारे में आगे की राह सुझाने लगते हैं.
—आदित्य मणि झा.