ब्रिटिश-तुर्क लेखक एलिफ शफक कट्टरपंथ के खिलाफ अपने मुखर लेखन के लिए दुनिया भर में चर्चित रही हैं. उनके नए उपन्यास, साहित्य और व्यवस्था में महिलाओं के दखल समेत चिंतन और नएपन पर इंडिया टुडे के संपादक सौरभ द्विवेदी ने उनसे बातचीत की:
अपनी लेखन प्रक्रिया पर
मेरे हिसाब से मुख्य रूप से दो तरह से एक उपन्यास लिखा जाता है. एक तरीका ज्यादा सोच-समझकर होता है, जैसे इंजीनियरिंग, एक गणितीय सोच के साथ. इसमें लेखक पूरी कहानी को पहले से कंट्रोल में रखना चाहता है, सब पहले से तय होता है. मैं ऐसे लिखने वाले लेखकों का सम्मान करती हूं, लेकिन यह मेरा तरीका नहीं है. मुझे दूसरा तरीका पसंद है, जिसमें लेखक थोड़ा-सा 'नशे में' हो, उसे पूरी तरह पता न हो कि वह क्या कर रहा है, लेकिन उसका अंर्तज्ञान बहुत मजबूत हो. मेरे लिए किरदारों का मुझे चौंकाना बहुत जरूरी है. मैं उन्हें कंट्रोल करने की कोशिश नहीं करती.
उपन्यास की तैयारी पर
आजादी और आत्मविश्वास को महसूस करने के लिए मुझे अच्छी तैयारी करनी पड़ती है. लिखने से पहले मैं बहुत रिसर्च करती हूं, बहुत सोचती हूं. मेरे पास नोटबुक्स होती हैं. मुझे सीखना पसंद है, कुछ भी छोटा हो या बड़ा, अगर मुझे मच्छरों की जिंदगी पर पढ़ना है, तो मैं पढ़ूंगी. अगर मुझे प्राचीन मेसोपोटामिया में जाना पड़े, तो जाऊंगी. मुझे इंटरडिसिप्लिनरी पढ़ाई पसंद है.
मेरा मानना है कि जब हम अपने कंफर्ट जोन से बाहर जाते हैं, तब हमारा दिमाग ज्यादा समृद्ध होता है. जब कोई उपन्यासकार न्यूरोसाइंस से कुछ सीखता है, या कोई वैज्ञानिक कविता से, या कोई कवि फिल्म थ्योरी से, या कोई निर्देशक डांस से, तो यही वे संवाद हैं जो हमारे दिमाग और आत्मा को वास्तव में पोषण देते हैं. और इसलिए मैं हमेशा अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलने की कोशिश करती हूं.
यही मेरा लिखने का तरीका है. गुजरे कई वर्षों में इस प्रक्रिया को लगातार साधने और इसे गहराई से आत्मसात करने की कोशिश करती रही हूं.
उपन्यास '10 मिनट 38 सेकंड्स इन अ स्ट्रेंज वर्ल्ड' पर
'10 मिनट 38 सेकंड्स इन अ स्ट्रेंज वर्ल्ड' एक सेक्स वर्कर की कहानी कहता है, और शुरुआत में ही हमें पता चल जाता है कि वह मर चुकी है. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि हालांकि उसका दिल धड़कना बंद कर चुका है, उसका दिमाग कुछ और मिनटों तक काम करता रहता है.
कुछ रोचक वैज्ञानिक अध्ययन हैं जो यह दिखाते हैं कि जब मानव हृदय बंद हो जाता है, तब भी मस्तिष्क लगभग 10 मिनट तक सक्रिय रह सकता है. वही पूरी किताब की संरचना का आधार बना. मैं विज्ञान से प्रेरित थी लेकिन खासतौर पर मैं उस कब्रिस्तान पर ध्यान देना चाहती थी जहां वह अंत में दफनाई जाती है. यह एक वास्तविक कब्रिस्तान है, इस्तांबुल के बाहरी इलाके में. यह इकलौता नहीं है. तुर्की भाषा में हम इसे कहते हैं, ''बेनाम लोगों का कब्रिस्तान'', जिनके जीवन में कोई साथी नहीं था लेकिन यह सच नहीं है. जो लोग वहां दफन हैं, उनके पास साथी थे, उनके दोस्त थे. यह बहुत दुखद जगह है जहां असली इंसानों को जैसे बिना किसी अंतिम संस्कार, रीति-रिवाज निभाए बगैर, बिना किसी अधिकार के फेंक दिया गया हो. और जहां असली इंसानों को संख्याओं में बदल दिया जाता है.
वहां कोई कब्र का पत्थर नहीं है. कोई फूल नहीं, कोई मिलने आने वाला नहीं. आप वहां दफन लोगों के नाम नहीं पढ़ सकते. तो क्या मैं इनमें से कम से कम किसी एक संख्या को उठा सकती हूं और उसे फिर से इंसान बना सकती हूं? जिसे इस तरह अमानवीय बना दिया गया है? उसे एक कहानी दूं, उसे दोस्त दूं, और दिखाऊं कि वह अकेली नहीं थी. हम अक्सर पढ़ते हैं कि शरणार्थी जो यूरोप पार करने की कोशिश में मारे जाते हैं, उनके शव कहां दफन होते हैं? यही कब्रिस्तान है. तो यह बहुत ही अलौकिक-सी जगह है.
सार्थक मौन और क्रूर खामोशी के बीच फर्क पर
एक लेखिका के रूप में मेरी रुचि सिर्फ कहानियों में नहीं है, बल्कि खामोशियों में भी है. जो लोग चुप करा दिए गए हैं, जिन्हें समाज ने हाशिए पर धकेल दिया है, जो खुद को बेआवाज और उपेक्षित महसूस करते हैं. मेरा मन स्वाभाविक रूप से उनकी ओर खिंचता है. मेरा मानना है कि साहित्य में यह शक्ति होती है कि वह हाशिए को केंद्र में ला सके, उन लोगों को फिर से मानवीय बना सके जिन्हें अमानवीय कर दिया गया था, अनदेखे को दिखा सके और जिनकी आवाज कभी सुनी नहीं गई, उन्हें सुना सके.
मैं तुर्किए से आती हूं. एक ऐसा देश जिसकी ऐतिहासिक विरासत बेहद पुरानी और समृद्ध है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमारी स्मृति भी उतनी ही मजबूत है. वास्तव में तुर्किए एक ऐसा समाज है जहां सामूहिक विस्मृति बहुत गहराई से मौजूद है. जो इतिहास हमें स्कूलों में पढ़ाया जाता है, वह ज्यादातर पुरुषों का, सत्ता के केंद्र में बैठे लोगों का इतिहास है. जैसे ही आप यह सवाल पूछते हैं कि महिलाओं की कहानियां कहां हैं? तो ऑटोमन (उस्मानिया) साम्राज्य में एक गहरी चुप्पी देखने को मिलती है. फिर आप पूछते हैं कि उन पुरुषों का क्या जो सत्ता से दूर थे? वहां भी वही चुप्पी है, एक खतरनाक और अर्थपूर्ण मौन.
स्मृति को औजार की तरह बरतने पर
मैं यह महसूस करती हूं कि बहुत-से ऐसे परिवार हैं जो या तो प्रवासी हैं या जिन्हें किसी तरह के विस्थापन या ट्रॉमा का सामना करना पड़ा है, जो जटिल पृष्ठभूमियों से आते हैं. और एक चीज जो हमेशा मेरा ध्यान आकर्षित करती है, वह यह है कि स्मृति और भूलने पर हमारी प्रतिक्रिया में पीढ़ी दर पीढ़ी अंतर है.
जो बुजुर्ग होते हैं, वे आमतौर पर सबसे बड़े कष्ट सहन करते हैं. वे अतीत को नहीं भूले हैं, बिल्कुल नहीं, लेकिन वे अतीत के बारे में बात नहीं करते. वे यह भी नहीं जानते कि उस बारे में कैसे बात करें.
दूसरी पीढ़ी, सामान्य तौर पर, अतीत में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखती. उनके पास अतीत के लिए समय या ऊर्जा नहीं होती क्योंकि उन्हें भविष्य की ओर देखना होता है. लेकिन दिलचस्प बात है कि यह तीसरी या चौथी पीढ़ी है, परिवारों में सबसे युवा लोग हैं, जो आजकल अपने पूर्वजों की विरासत के बारे में सबसे गहरे सवाल पूछ रहे हैं. मैं ये मानती हूं कि लेखक दरअसल समाज और अपने समय की यादों के संरक्षक होते हैं.
मौजूदा विश्व व्यवस्था में साहित्य और लेखक की भूमिका पर
साहित्य वास्तव में हमें सत्य के करीब लाता है, और वह अपने तरीके से यह करता है. मुझे लगता है, एक लेखक का काम है कि वह अच्छी चीजें पढ़े और अच्छा श्रोता बने. मुझे लोगों को सुनना बहुत पसंद है. इसके अलावा मुझे उस चुप्पी को सुनना भी बहुत पसंद है, जो उनके कहने और कहते-कहते रुक जाने के बीच जाहिर होती है. तो मैं बस यह कहना चाहती हूं कि हम अपनी उत्सुकता को बनाए रखें. साहित्य के लिए यह बहुत जरूरी है. दूसरी चीज जो मुझे बहुत जरूरी लगती है, वह है पुल बनाना. क्या हम ये पुल बना सकते हैं? मेरे लेखन में सियासी सवाल हैं, लेकिन लेखक उपदेश देने, सिखाने या भाषण देने की कोशिश करें, यह मुझे पसंद नहीं.
सियासी दबाव और आलोचना पर
यह बात सच है कि तुर्किए में उपन्यासकार होना आसान नहीं, ऊपर से एक महिला उपन्यासकार होना तो और भी मुश्किल है. जब आप सियासत, इतिहास, जेंडर या सेक्सुएलिटी जैसे मुद्दों पर लिखते हैं तो वहां की सरकार को बहुत जल्दी आपत्ति हो जाती है. मेरे साथ ऐसा ही हुआ. 2006 में मुझे तुर्किए में 'तुर्कीयत का अपमान' करने के आरोप में मुकदमे का सामना करना पड़ा.
हमारे संविधान में एक अनुच्छेद है जो 'तुर्कीयत' की रक्षा करता है, भले ही कोई यह नहीं जानता कि इसका मतलब क्या है? पहले यह कानून पत्रकारों और कुछ स्कॉलर्स पर लगाया गया था, लेकिन पहली बार इसे एक फिक्शन लेखक के खिलाफ इस्तेमाल किया गया, और वो मैं थी.
यह किताब थी 'द बास्टर्ड ऑफ इस्तांबुल', जिसमें एक तुर्किए परिवार और एक अर्मेनियाई-अमेरिकी परिवार की कहानी है. यह मुकदमा साल भर चला. उस दौरान लोग यूरोपियन यूनियन का झंडा जलाते थे, मेरी तस्वीरों पर थूकते थे. मुझे देशद्रोही कहते थे.
इन वजहों से मैं ट्रायल के बाद यूके आ गई. मुझे आजादी चाहिए थी, लेखक के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही ऑक्सीजन होती है. अंग्रेजी मेरी मातृभाषा नहीं है, लेकिन मैंने उसमें लिखना चुना क्योंकि उसने मुझे एक मानसिक दूरी और आजादी दी.
सेल्फ-सेंसरशिप पर
यह सच न होगा अगर मैं कहूं कि मैं बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुई. ट्रायल का समय मेरे लिए बहुत ही अस्थिर करने वाला था. मुझे वह समय कठिन लगा, दुखद भी. एक लेखक के तौर पर कभी-कभी बहुत सावधान रहना पड़ता है क्योंकि यह आपको सेल्फ-सेंसरशिप की तरफ भी ले जा सकता है. आप सोचने लगते हैं, 'क्या होगा अगर मैंने इस विषय को छुआ, या उस विषय को?' और हमें इस सेल्फ-सेंसरशिप को रोकना होगा, वरना हम लिख ही नहीं पाएंगे.
जब मैं एक उपन्यास शुरू करती हूं, तो कोशिश करती हूं कि जितनी देर तक और जितनी गहराई से उस काल्पनिक दुनिया में रह पाऊं, रहूं. वह दुनिया मेरी हकीकत बन जाती है. वे काल्पनिक किरदार मेरे साथी बन जाते हैं.
उपन्यास द थ्री डॉटर्स ऑफ ईव पर
'द थ्री डॉटर्स ऑफ ईव' में तीन युवा किरदार हैं, जो 'आस्था' और 'संदेह' के सवालों से जूझते हैं, लेकिन हरेक का नजरिया अलग है. उनमें से एक ज्यादा धार्मिक है, दूसरी नास्तिक है, और तीसरी खुद को उलझा हुआ महसूस करती है, जो कई बातों के बारे में सोच रही है. लेकिन तीनों एक यात्रा पर हैं. जैसे हम सब होते हैं. शायद हम सभी के अंदर इन तीनों का थोड़ा-थोड़ा हिस्सा है.
या फिर हो सकता है कि जीवन के अलग-अलग पड़ावों में हम अलग महसूस करते हैं, जैसे जवानी में कुछ और, उम्र बढ़ने पर कुछ और. मुझे अच्छा लगता है जब आस्था और संदेह एक-दूसरे को चुनौती देते हैं या एक-दूसरे से संवाद करते हैं. मुझे डर लगता है जब कुछ चीजें बिल्कुल तय और पक्की हो जाती हैं. संदेह एक अच्छी चीज है. हमें खुद पर भी शक करना चाहिए. थोड़ी-सी गुंजाइश हमेशा खुली रहनी चाहिए.
किसी एक निश्चित पहचान में बंधने पर
हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जो विविधता को महत्व नहीं देती और हमें अपनी बहुआयामी पहचान को अपनाने का मौका भी नहीं देती. लेकिन एक इंसान के रूप में, जैसा कि वॉल्ट व्हिटमैन ने बहुत सुंदर तरीके से कहा था, ''हम सबके भीतर कई अलग-अलग व्यक्तित्व होते हैं, चाहे हम कहीं से भी आए हों'', जब मैं खुद को देखती हूं, तो बेशक मैं तुर्किए से हूं, और तुर्क होना मेरी लेखनी का एक अहम हिस्सा है, लेकिन साथ ही मुझे बाल्कन देशों से भी जुड़ाव महसूस होता है.
मेरे अंदर पश्चिम एशिया की भी कुछ गहराइयां हैं, जो हमेशा मेरे साथ रहेंगी. साथ ही मैं जन्म से यूरोपीय भी हूं. जिन मूल्यों को मैंने अपनाया, वे यूरोप से आए हैं. समय के साथ मैं ब्रिटिश भी बन गई हूं, और इस देश से गहरा जुड़ाव महसूस करती हूं. हर इंसान जटिल होता है. एक इंसान को देखें तो उसके भीतर परत दर परत कहानियां होती हैं. तो फिर हम इस विविधता का जश्न क्यों न मनाएं?
दुनिया भर में मशहूर क्लासिक उपन्यास डॉन किहोते पर
डॉन किहोते ने मेरी कल्पना की दुनिया के लिए एक नया दरवाजा खोल दिया. मेरे ख्याल से उपन्यास हमें दिखाते हैं कि जिंदगी जीने के और भी तरीके हो सकते हैं. मैं सच में मानती हूं कि किताबें हमें बचा सकती हैं, हमें बदल सकती हैं. मैं ऐसा क्यों कहती हूं? क्योंकि मेरे साथ ऐसा हुआ है. जब मैं अपना बचपन याद करती हूं, तो मुझे लगता है, मैं एक सिंगल वर्किंग मदर के साथ बड़ी हुई. उस समय तुर्किए में ऐसा होना बहुत असामान्य था. मैंने अपने पिता को कभी नहीं देखा. मेरे पालन-पोषण में मेरी दादी का भी रोल था, जो थोड़ी-बहुत किस्सागो भी थीं. तो ये दो महिलाएं थीं जिन्होंने मुझे पाला.
अपने जीवन में दादी और नानी के असर पर
मेरा पालन-पोषण मेरी नानी ने किया था. करीब 10 साल की उम्र तक मैं उन्हीं के साथ रही जबकि मेरी दादी से मेरा संपर्क थोड़ा सीमित रहा. मैंने एक निबंध भी लिखा था उस गर्मी के बारे में जब मैं दोनों से मिली थी. दिलचस्प बात यह है कि ये दोनों महिलाएं एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थीं. बचपन में भी मुझे यह देखना बहुत दिलचस्प लगता था कि दो औरतें, एक जैसे समाज से आकर भी दुनिया को इतना अलग कैसे देखती हैं? मैं फ्रांस में पैदा हुई थी, लेकिन जब मेरे माता-पिता अलग हो गए, तो मेरी मां मुझे तुर्किए ले आईं.
मां के लिए यह मातृभूमि थी पर मेरे लिए बिल्कुल एक नया देश. मेरी मां ने यह सोचकर यूनिवर्सिटी छोड़ दी थी कि प्यार ही सब कुछ है. लेकिन शादी टूटने के बाद वे तुर्किए लौटीं. उनके पास न पैसा था, न डिग्री, न कोई करियर. नानी बहुत पढ़ी-लिखी नहीं थीं, क्योंकि एक लड़की होने की वजह से उन्हें स्कूल से निकाल लिया गया था.
नानी कहा करती थीं कि तुम्हारे पास कोई बड़ी डिग्री भले न हो लेकिन तुम एक समझदार इंसान तो बन ही सकती हो. और कोई बहुत बड़ी यूनिवर्सिटी से पढ़कर भी नासमझ रह सकता है. ज्ञान के कई रास्ते हैं.
अपने लेखन और जीवन में हास्य की मौजूदगी पर
मेरी लेखनी में उदासी है, लेकिन उसमें बहुत सारा हास्य भी है. मुझे लगता है कि हास्य हमें मानसिक रूप से संतुलित रखता है. मुझे हास्य पसंद है. लेकिन घमंडी हास्य नहीं. मुझे यह बात पसंद नहीं आती जब लेखक खुद को दूसरों से ऊपर रखकर दूसरे लोगों की कमजोरियों का मजाक उड़ाते हैं. पर हां, करुणामय हास्य मुझे बहुत पसंद है. मुझे करुणा पसंद है. मुझे सहानुभूति पसंद है. मुझे प्रेम पसंद है.
मुझे आशा पसंद है. और ये चीजें बेहद जरूरी हैं. अगर हमारा मन थोड़ा ज्यादा निराशावादी है, तो जरूरी नहीं कि वह कोई गलत बात हो. हम चिंता के युग में जी रहे हैं. लेकिन मेरा मानना है कि मैं भावनाओं के बारे में ईमानदारी और खुलेपन से बात करना पसंद करूंगी और उन्हें एक कच्ची ऊर्जा के स्रोत की तरह लूंगी. सवाल यह नहीं है कि क्या हम दुखी हैं या चिंतित हैं या व्याकुल हैं या गुस्से में हैं, सवाल यह है कि हम इन कच्ची भावनाओं के साथ क्या करते हैं? क्या हम उन्हें किसी सकारात्मक चीज में बदल सकते हैं? यही एक बात है जो मेरे लिए बहुत मायने रखती है.
जीवन में किताबों के असर पर
मुझे इस सवाल का जवाब देने में कठिनाई होती है क्योंकि जब मैं अपनी उन किताबों को देखती हूं, जिन्होंने मुझ पर प्रभाव डाला, तो यह बहुत विविध है. मेरी दादी के घर में इतनी सारी किताबें नहीं थीं, उनके पास कोई विशाल पुस्तकालय न था. उनके पास गिनती की किताबें थीं. मैं उन्हें पढ़ती और फिर से पढ़ती. उस दौरान इन कहानियों के अलग-अलग अंत सोचती थी. फिर जब हम अपनी मां के साथ स्पेन गए और मैंने स्पेनिश और अंग्रेजी सीखी, तो मेरे लिए एक नया संसार खुला.
इस बार मैंने स्पैनिश उपन्यासों की खोज शुरू की. उपन्यास वह जगह है जहां मेरा दिल धड़कता है. कहानी के अलावा, मुझे कविता पढ़ना पसंद है, मुझे राजनैतिक दर्शन पढ़ना पसंद है. महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपनी जिज्ञासा को जीवित रखना चाहिए. सबसे जरूरी बात कि हमें अपने भीतर उठते सवालों को, जवाब खोजने की कोशिशों की खुराक देकर बचाए और बनाए रखना चाहिए.
भारत से जुड़ाव पर
मुझे यह कहते हुए शर्मिंदगी महसूस हो रही है कि मैं अब तक भारत नहीं आ पाई हूं. लेकिन मैं भारत के लोगों और वहां की संस्कृति से बहुत जुड़ा हुआ महसूस करती हूं. मुझे अब तक जितने भी पत्र मिले हैं, उनमें सबसे भावुक और दिल को छू लेने वाले पत्र भारत से ही आए हैं. मैं भारत के युवाओं से, खासकर महिलाओं से, चाहे वे किसी भी उम्र या पृष्ठभूमि की हों उन सबसे प्रेरित भी होती हूं. मुझे लगता है कि यह सिर्फ एक बौद्धिक संबंध नहीं, बल्कि यह एक भावनात्मक रिश्ता भी है. दिल से दिल का रिश्ता. इसलिए मैं खुद को वहां के लोगों से गहराई से जुड़ा हुआ महसूस करती हूं और उम्मीद करती हूं कि बहुत जल्द भारत आऊंगी.
एलिफ़ शफ़क की 5 प्रमुख किताबें
1. देअर आर रिवर्स इन द स्काइ
2. 10 मिनट्स 38 सेकंड्स इन द स्ट्रैंज वर्ल्ड
3. द फोर्टी रूल्स ऑफ लव
4. द आइलैंड ऑफ मिसिंग ट्रीज़
5. द बास्टर्ड ऑफ इस्तांबुल
साहित्य में यह शक्ति होती है कि वह हाशिए को केंद्र में ला सके, उन लोगों को फिर से मानवीय बना सके जिन्हें अमानवीय कर दिया गया था, अनदेखे को दिखा सके. मैं भारत के लोगों और संस्कृति से बहुत जुड़ा हुआ महसूस करती हूं. मुझे अब तक जितने भी पत्र मिले हैं, उनमें सबसे भावुक और दिल को छू लेने वाले पत्र भारत से आए हैं.